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________________ ५८ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ .. अथ मेदनीपुर वर्णनम् - छप्पयते मरुघर मझ तिसौ नयर मेदनीपुर नीको। भुवण भामिनी भाल ताण विधिरचियो टीको । बहु गढकोट बाजार गयण छबि मंदिर गोखां । वणे चिहुं दिस वाग जेथ जण माणे जोखां ॥ कलि कंठ केकि पिक सब्द कर, हवा लेत भोगी हलक । दरगाह देखि चत्रभुज दरस, माने ते तीरथ मुलक ॥ ३ ॥ सवैया ३१वसें जहां च्यारवर्ण तामें ते से जिन के सवर्ण, और कौन ऐसा बड़ा सुमतीक है । धर्मषटकर्म दरम्यान बड़े सावधान, ग्यान ध्यान दान मान जान सुव्रतीक है। तर्क छंद व्याकरण ठारह पुराण वेद, विद्या दसच्यार के निधान तहतीक है। कहै कवि जीह एक कहां लु वखान याके, यो तो उपमान मानुजान किरती कहै । श्रीमेडता नगरथी, लिखत मुदा सुविचार । श्रीजी साहब मानज्यो, वंदणा वार हजार ॥ १॥ कहा ओपम तुमकुं लिखू, जगमें तुम सम होय । नमतां सीस पवित्रसु, पातिक दूरै होय ॥२॥ देस अनेक जगमें अछ, श्रीजी साहिब जाण। पिण मरुधर समवड़ नहीं, दीसै अधिको मान ॥३॥ मेरूधर अधिको मंडोवरो, जोधपर सरजाम । राजांन प्रतपै सदा, हिंदूतिलक ही ठाम ॥ ४ ॥ (१) कपूर हुवै अति ऊजलो रे-ए देसी। तिण हीज मरुधर देस में रे, नयरी मेदनीपुरनीक । भुवन भामिनी भाल ज्यु रे, तिणविध रचीयो टीक रे। सरिजन ॥ जाणो गच्छपति राय ॥ बहुगढ कोट बाजार छै रे, गगनांगण पुंता गोख । वनवाडी दिसवागसुं रे, भोगी माणे जोख रे ।। सु०॥ जा॥२॥ पवन छत्रीस जिहां वसै रे, लोक सहु धनवंत । कुबेर मिल संका करै रे, मुझ नगरी सु महंत रे। सु०॥जा०॥३॥ आदीसरनो देहरो रे, सोहै चउटा वीच । सूरज मन इम ऊपनो रे, कीरत थंभ ए वीच रे । सु० ॥ जा० ॥४॥ देहरा बारै सोहता रे, स्वर्ग सुं मांडै वाद। महिमा घणी रे, महजित सर्व सुजाद रे ॥ सु०॥ जा०॥५॥ मेडता पुर सर सोहता रे, फलवधि पास जिणंद । मुझ मनवंछित पूरणा रे, चूरणा तमस दिणंद रे।। सु०॥जा०॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211741
Book TitleMedta se Vijay Jinendrasuri ko Virampur Preshit Sachitra Vignapati Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherZ_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size3 MB
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