________________ मेडता से विजयजिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : 63 मेडतापुरनी वीनति; मानेज्यो महाराज हो / स०। मरुधर देश पधारियै, देसा में सिरताज हो / स ग०॥६॥ वधाविस्युं गच्छरायने, मोतियां भरिभरि थाल हो / स० / जलधर सहुनें सम गिणे, तिम तुमे जाणो कृपाल हो / स० / ग० // 7 // गुलाल संतोषनी वीनति, जय जय पदना राग हो / स०। ध्यावै सद्गुरु चरणनै, सफल करै निज भाग हो / स.ग.॥८॥ साचा चरणनै सेवतां, सुख उपजै मन रंग हो / स०। दीपक मन हरख सं, देज्यो अविचल संग हो / स ग०॥९॥ इति स्वाध्याय समाप्तम् || श्री // स्वस्ति श्रीवीरमगांव नगर शुभस्थाने सकल शुभ ओपमा विराजमान अनेक ओपमा लायक एक वीध संजमरा पाळणहार, दुविध ध्रम रा जाण, तीन तत रा जाण, चार कषाय रा जीपक, पंच महाव्रत धारक, नव ब्रह्मचर्य रा पालक, दशविध जती भ्रम रा धारक, इग्यारै अंग रा जाण, बारै उपांग रा जाण, तेरै काठीयाजीपक, चवदै विद्या रा निधान, पनरै सीध भेद रा जाण, सोलै कला निर्मला, सतरै भेद संजम रा पालक, अठारै पापस्थानक रा निवारक, वीस थानक, इकीस श्रावक रा गुण प्रकाशक, बाईस परीसे रा जीपक, तेईस विर्षे रा निवारक, चोईस जिणेसर रा आज्ञा रा पालक, पचीस भावना रा जाण, छाईस कल्पना रा जाण, सताईस साधु गुण रा भंडारक, आग्यादक छतीस गुणेकर विराजमान, सकल भटारक सिरोमणी, पुज्य पुरंदर, भट्टारकजी श्री श्री श्री श्री श्री 108 श्री श्री विजैजिनेन्द्रसूरीसुर जी सपरिवारान्...चरणकमलान् श्री मेड़ताथी सदा सेवक आज्ञाकारी हुकमी पाट भगत समस्त संघ लिखतुं वंदणा त्रिकाल दिनप्रते वार 108 वार अवधारसी जी अठारा समाचार श्री देव गुरां री कृपा कर नै भला छैजी। पूज्यश्रीजी साहबां रा सदा सरबदा आरोग्य चाहीजेजी। पूज्य श्री जी साहबां रे आहार पाणी गंगाजल आरोगण रा घणा जतन करावसी जी, जतन तो श्री इष्ट देवजी करसी, पिण सिंघ नै तो लिखो चाहीजे, रु पुजजीरा चरणारविंद भेटण री संघ घणी उमेद राखै छे, सु श्री फलोधी पारसनाथजी री जात्रा सारू पधारसी नै मेड़तारा संघ नै वंदावसी तिको दिन धन हसीजी, श्रीजी मोटा छौ, श्री गणधर जीरी गादी विराजीया छो, सुश्रीजी रा गुणांरो पार नहीं, मेडता रा संघ ऊपर सदा कृपा रखावै छै तिण सुं विशेष रखावसी जी औ। मेड़तेचोमासे पुन्यास जी गुलालविजेजी संतोषविजै जी श्रीजी री आग्या सुं रहा सुंश्री पजुसण परब नीरविगन पणै वखाणपचखाण पोसग पडकुणा पुजा प्रभावना चैत्रप्रवाड़ घणा आडंबर सुं हुवा छै नै श्रीजी रो ध्रम रो घणो आछो लागो छै। बीजो समै बहोत तरैदार वरसो वरस उतरती समै आवै छै सु लिखण में कुं आवै नहीं जी पिण आज दिण तांइ तो श्रीजी रा उपासरा री नै गछ री सारी मरजाद सदा मद सुं साचवीजी गई है। गीतारथ चौमासै रहै सु बोहोत संकट पावै छै पिण श्री जी रा उपासरा री तो घणी मरजाद राखी छै पीछा हमें श्री अदीसटायक जी राखसी ने सरावगां रा घर सैर में निराट थोड़ा रहा छै आहार पाणी रो तथा कपड़ा री समै छै सु तो आगेइ आप जागै छै नै हमै विशेष संमे छै सु लिखणै जु नहीं। चोमासी तो आप घणा जोग्य मेलीया पण समै नहीं जिण रो विचार छै। बीजी पाटीये वखाण श्री जंबुदीपपनती वचै छै सेजाय श्री गीनाता सुत्ररी हुवै छै। वखाण सजाय तो नित हुवां जाय छै। गछी तथा पर गछी सरावग सरावगणी आयै छै / गच्छ रो फुटरो दीखावै छै और पोर का चोमासीया रा समाचार सींघ रा कागद सुं जाणसी। आप लीखो मेडतै में रहै तो रणै देजो मती सु मेडता में विना आग्या किसै लेखै रहैं नै किसै लेखै राखां। अठैतो श्री जी री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org