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________________ दूहा छप्पय दूहा काव्य - दूहा - Jain Education International मेड़ता से विजय जिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : ५३ True वीरम सहर में, फतेसिंघ बाबोराय । धरम नीत प्रतिपालणो, वखत वडै सुभ भाव ॥ १ ॥ सदा रहो शिव भक्ति उर, क्षत्री धर्म सुभाव । रीत नीत जालम मही, गहिरो फतैसिंघ राव ॥ २ ॥ महा सूर सीर वीर चिहुँ दिसां वदीतो तेज पाण तरवार च्यार दिस सहजां जीतो न्याय नीत में निपुण दीपै दातार दिन प्रत धरमधुरा धारणो हेक शिवभक्ति हुता हित फतेसिंघ गहिरो गुणा, बड़ वखत वाटे वरो सूर ज्यो रहो सालम मही, कोड जुगां राजस करो ॥ १ ॥ सोबादार सदा गुनी, बखतवंत नर नाथ । श्रीजी साहिब वीनती, पउधारो नर साथ ॥ १ ॥ करि वंदन श्रावक कहे, पउधारो पुर माह । जनम सफल होसी खरो, धरम कलप विकसह ॥ २ ॥ इम सुण श्रीजी ऊठीया, मंगलकलश वंदाय । जय जय शब्द उचारीया, भट्ट चरणशुभ वाय ॥ ३ ॥ आर्ये भारत खण्ड मण्डन निभे श्रीमजनोद्यत्प्रभे । शी स्थिति सो दये धनि जनैस्सर्वत्र वित्ताह्नये । देशे गुर्जर संज्ञिके नरपति प्रोढप्रतापोदये दुष्टा नीतिदुरीति भीत रहिते विक्रमेपत्तने ॥ १ ॥ अथ श्रीविजय जिनेन्द्रसूरीश्वरानां वर्णनम् काव्य माधुर्येण वचः श्रिया नयनयोर्भालस्य भाग्योदये कान्त्या कान्ततनोर्मनोऽमलतया सिद्धया करांभोजयो कत्तु जैन मतानुगं समजगद् येषां क्षितौ विहृति स्ते पूज्या जिनशासनारुणसमाः साक्षाद्गुणेशोपमा ॥ १ ॥ अथ छंद माणकदण्ड- श्री पूज्यराज गुणके जिहाज, जिम इंदुराज, गुणविमल साज विद्याभंडार, अनुपम आचार, संयम सुधार, जुगतलि विचार शीले सरूप, त्रिण भवन भूप, गुणके गुहीर, त्रिणरत्न सीर मेरूसुधीरः परत्रिया वीर, आनंदकंद, जिम सुधाचंद विलसो विवेक, चारित्र टेक, धर्महसुरिंद, तिण तखतचंद्र दीपक, वृंद सुख स्नेहकंद, अष्ट करमके भांजणहार, महिमात्रंत महंत ॥ गुण हवा तुमचा कहुं, एक जीभ जो होय आचारिज गुण आगला, एकसो आठ हि सोय ॥ १ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211741
Book TitleMedta se Vijay Jinendrasuri ko Virampur Preshit Sachitra Vignapati Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherZ_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size3 MB
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