Book Title: Medta se Vijay Jinendrasuri ko Virampur Preshit Sachitra Vignapati Patra
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_

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Page 11
________________ मेडतासे विजयजिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : ५७ महामुनि संसेवित चरणजलजैः। पंच महावतपालकैः। श्रीमदाचार्यवय्यः धर्म धुरिणैः॥ सकलगुणगरिष्टै रेत्यादि पत्रिंश त्रिंशतिषट् गुणोपेतः । जंगम जुगप्रधानः सकलभट्टारक शिरोमण्यैः पुरन्दर भट्टारकैः॥ भ। जी श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री १०८ श्री श्री श्री श्री श्री श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरजित्क पा चरणान् दलमितः श्री मेदनीपुरतः समस्त संघ लिखति प्रणति पत्रद्वारा सहस्राष्ट संख्येति वाच्या ॥ अत्र श्रीमदिष्टदेव प्रसादागव्यं । तत्रापि श्रीमतामगण्य पुण्यवतामहर्निशं भावुकं भूयादिति। यूयं गुग गरिष्टाः। सदिष्टाः। तथा च श्रीमतां शुभवतां भवतामाध्यानमहर्मिशं मयिका क्रियते श्रीमद्भिरयई समये स्मरणीयं यदुक्तं नैषधकाव्यः तववर्मनि वर्ततां शिवं पुनरस्तु भवतां समागमः अयिसाधय साधयेप्सितं स्मरणीयाः समये वयं वयः॥१॥ इत्यादि ज्ञेयं । तया च कृपादृष्टि सृष्टि रक्षणीया। नो हेयाश्रीमद्भिः प्रीतिरीतिरस्मदुचितं कार्य संलेख्यं । पार्थिवयं नो विचार्यम् ॥ काव्यलब्धेगौतम प्राज्ञवान् सुरगुरु रूपे रतीनां पतिः आदित्यस्य वपुः प्रभा नयनयोः कृष्णप्रियायां पुनः चंद्रोल्लासित कंजवत् गुरुमुखं वाणी सुधासागरः श्रीमद् पाटपटोधरो विजयते जैनेन्द्रसूरिश्चिरम् ॥ १ ॥ __ अथ वाणीवर्णनम्-॥ सवैया ३१ ॥ जाकी मधुराई आगे सयानी लजानी सुधा, जानी अपमानी तब नाक वास ठानी है। साकरी को काकर को रूप धरि रही छानी, योही डर राखि मर्नु द्राख सकुचानी है। याकै पक्षपात इक्षु लोकन समक्ष लक्ष, घानी में पिलानी याते अति ही डरानी है। सुनत सुहानी सवै रीझि रहे भव्य जानी, ऐसी सुगुरुवानी जाते वानीही हरानी है॥१॥ अथ मरुधर देश वर्णन भाषा छप्पयदेशां सिरहर देश वाह मरुधर वरणीजै वडा मरद वंकडां जेथ उतपति जागीजै। असल धरम. अकलंक असल हिंदुआण आचारं । दरसण षट देवांण बडो मरजाद विचारं ।। ते मझि जुधाण कमां तखत सहिर बीओ सहिरां सिरै। जोवतां सोभ सहि विधिजुगति जे सु अलकाही रहिगी उरै ॥१॥ __ अथ मरूधराधीश्वर राजराजेश्वर महाराज श्री मानसिंघ देव वर्णनमानासंघ वड़वखत विजय नृप तखत विराजै । नवतवंत नर नाह रूपत जेहो इंदराजै॥ गजन जिसो गजगाह राह हिन्दू ध्रम रख्यण। जैरी संक करै पतिसाह वाह सवि वात विचख्यण ॥ सक बंध भूप अवसाण सिच, भाण जास धरपुर अदल तप तेज भाण हिन्दू तिलक, माण दुजण आषाढ मल ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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