Book Title: Medta se Vijay Jinendrasuri ko Virampur Preshit Sachitra Vignapati Patra
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_

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Page 2
________________ ५० : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ जिसके दोनों और स्त्रियां खडी हैं। इसके बाद छत्रके नीचे दो स्त्रियां नृत्य कर रही हैं, दो स्त्रियां बाजा बजा रही है, एक ढोलक और दूसरी वीणा बजा रही है। तदनंतर अष्ट मंगलिक, १४ महास्वप्न, त्रिशला माता. सिद्धार्थके सामने बैठे स्वप्नफल पाठक। फिर जिनालय, बाजार, दुकाने, महन्त, मसजिद । इसके बाद बाजार, तीन-तीन दुकानें, श्रीनाथजी का मन्दिर। फिर तीन-तीन दुकाने, रास्तेमें १ घुडसवार, पनिहारी, पुरुषवर्ग, दो मुनि जिनके हाथमें काले रंगकी त्रिपणी है, चित्रित किये गये हैं। फिर हाथी पर ध्वजाधारी। तदनन्तर चार घुडसवार, दस बाजा बजाने वाले, अश्वारोही राजा जिसके आगे २ और पीछे तीन और बगलमें २ आदमी चल रहे हैं। तदनन्तर १५ पुरुष, ९ बच्चा, १३ स्त्रियां और १ बालिका है। स्त्रियोंके मस्तक पर घडे। इसके बाद उपाश्रयमें आचार्य तख्त पर बैठे हैं। सामने ४ श्रावक और स्थापनाचार्य हैं, पीछे चँवरधारी खड़ा है। तख्तके पास ८ साधु, ७ श्राविकायें जिनमें एक खड़ी है, एक व्यक्तिका एक पांव आगे और एक पांव पीछे हैं। इसके बाद साध्वीजीका उपाश्रय है। ४ श्राविकायें बैठी हैं। फिर पार्श्वनाथ मन्दिर शिखरयुक्त, जिसके दाहिनी ओर अन्य तीर्थकर और बांयी ओर दादागुरु विराजमान है और एक नर्तकी नृत्य कर रही है जिसके एक तरफ वाजित्र बजाने वाला खड़ा है। इन भावचित्रों के बाद विज्ञप्तिलेख लिखा हुआ है जिसकी नकल आगे दी जा रही है। विज्ञप्तिलेखमें वीरमगांवके राव फतहासिंह, टोकर सेठ, ४ जैन मन्दिर, ईश्वर, माता, गणपति, भैरव, ६४ योगिनी, ५२ वीर व सहस्रलिंग तालाबका महत्वपूर्ण उल्लेख है। फिर विजय जिनेन्द्रसूरिके १०८ गुणोंका उल्लेख करते हुये से लेकर १०८ तककी वस्तुओं व प्रकारोंका वर्णन महत्वका है। तदनन्तर मरूधर देश, राजा मानसिंह, मेदनीपुर (मेड़ता), वहांके १२ मन्दिर, हाकम पंचोली गोपालदासका काव्यमें उल्लेख कवि गुलालविजयके शिष्य दीपविजयने किया है। फिर आचार्यश्रीके गुण-वर्णन, उनके साथके मुनियोंके नाम और मेड़तेके मुनियों के नाम काव्यमें है। आगे मारवाडी भाषामें गद्यमें पत्र है जिसमें पर्युषण आदिके समाचार व उपालम्भ लिखा हुआ है। यह लेख संवत १८६७के मिगसर सुदि ५को शिवचंद्रने संघके कहनेसे लिखा है। प्रस्तुत लेखका आधा अंश गुजरात संबंधी है और आधा मारवाड़ संबंधी। तत्कालीन मारवाडी भाषा एवं अन्य अनेक बातोंकी इस लेख द्वारा महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। लेखमें गुलालविजयको कविराय विशेषण दिया है अतः उनकी कविताओंकी खोज की जानी आवश्यक है। विज्ञप्तिपत्र ॥०॥ श्रीसद्गुरुभ्यो नमः ॥ श्रीमन्जिनराज वाग्वादिनी सद्रुचरण स्वस्ति श्रीरमरसुरासुरावनि चराधीशोत्तमांगेर्नतं । लोकालोक विलोकनैक रसिकं धात्रादि देवैः स्तुतं ॥ दृष्टायं चरणाश्रये स्थितिमती चक्रेश्वरी रूपभाक् जाता भक्तजनेष्टदा जयतु स श्रीनाभिजातो जिनः ॥१॥ अथ श्रीशांति जिनस्तुति:-- शशामयस्मिन्नचिरीदरे च, चिरंतनोरुक प्रचुरं प्रचारः। आयातएवेतदुदारचोधं, जातं स शांति शिव तातिरस्तु ॥२॥ अथ श्री नेमितीर्थकृवर्णनम्राजीव दृग्योषिदुदारराजी ललामहित्वात्तय मोरराज । राजीमती यो खिल योगिराजो, भूयात्सनेमि विकाष्टसिद्धये ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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