Book Title: Mahavira Smruti Granth Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain, Others
Publisher: Mahavir Jain Society Agra

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Page 285
________________ Jain Code and jainism. By Shri Sahitya-Chandra; Vāngmaya-Pradip; Raoji NEMCHAND SHAH, Pleader, Sholapur (Editor Pragati Jinvijaya and Veer Com. Vol., President Jain Sahitya Sera Mandal) [प्रस्तुत लेखमें श्री. रावजी नेमिचदजी शाहने जैन कानूनकी विशेषता और उसको मान्य करानेकी आवश्यकता पर प्रकाश डाला है । जैनधर्म एक अति प्राचीन धर्म है। वह लिखते हैं कि जनों के प्रथम तीर्थकर भषभदेवके पिता नाभिरायको अपेक्षा यह देश अजनाम वर्ष कहलाता था और उनके पुत्र मरतके नाम पर वही भारत वर्ष कहलाया। वृषम तीर्थकरको हिन्दू विष्णूका अवतार मानते हैं और कहते है कि अब तक उनको हुये २८ युग बीत चुके हैं। वह आदि धर्मप्रवर्वक थे। ऋग्वेदकी पहवाओमी ऋषम और अरिष्टनेमि तीर्थंकरोंका उल्लेख हुआ है। 'मागवत' एवं 'विष्णु' पुराणों में ऋषभदेवका चरित्र ठीक उसी प्रकार लिखा हुआ है जैसा कि जैन पुराणों में मिलता है। मोहनजोडरोकी मुद्राओसभी सिद्ध है कि जैनधर्म पाच हजार वर्ष पहले प्रचलित था। मुद्रा न० ४४९ पर जिनेश्वर शब्द पढ़ा गया है। मथुराके ककाली टोलासे बहु माचीन मूर्तियां तीर्थंकर ऋषभदेवकी मिली हैं। अतः ऋषभदेवका समय प्रायः ऐतिहासिक अलमें बहु प्राचीन । पैठता है। वह वैदिक यायोंके आगमनसे पहलेके महापुरुष ठहरते हैं। अतः जैनधर्म उनके घरावर । पाचीन सिद्ध होता है । उसे वैदिक धर्मकी शाखा बताना गलत है—जैनोंको हिन्दू धर्मावरोधी लोग ( Hindu Dissenters) कहना औरभी गलत है। जैनोंका अपना धर्म है, अपने देवता हैं और अपने शास्त्र हैं। निराली पूजाविधि है, जिसमें पशुबलि निषिद्ध है। अहिंसा परमधर्म है। श्राद्धतर्पण आदि कुछ नहीं है। उनकी निराली सस्क्रांत और दायमागके विधि विधान है। 'भद्रबाहु सहिता'- अईनीति' आदि दायभाग सम्बन्धी शान है। किन्तु इतने फरभी जैनोंके मुकदमे हिन्दू लॉके अनुसार निर्णित किये जाते हैं। जैनोंके, पति यह अन्याय है। मान्य लेखकने न्यायाधीशोंके अभिमत उपस्थित करके जैनकानूनको विशेषता स्थापित की है। महासके चीफ जब्ब सा. श्री कुमारस्वामी शास्त्रीने स्पष्ट कहा था कि “जैनों के अपने दायभाग विषयक शास्त्र हैं। हिन्दू कानून उनके प्रति लागू करने के लिए कोई उपयुक्त कारण नहीं है।" अन्य अभिमतभी यही प्रगट करते हैं। अतएव जैनोंके लिए तो उनका अपना शास्त्र सम्मत जैन कानून बनना चाहिये । स्वतंत्र मारतमें इस अन्यायका अन्त होना चाहिये। जनोंको मिलकर इसके लिये जोरदार आन्दोलन उठाना चाहिये। जैन सेवा मंडल नागपुरते इस दिशा में विशेष उद्योग किया था, पर संगठनके अमावमें उसकोभी सफलता नहीं मिली। जैन कानूनमें लियोंको विशेष अधिकार प्राप्त है। वह स्वय गोद ले सकती है और पतिकी उत्तराधिकारी हो सकती है। प्रस्तुत लेखमें इन सब बातोंको दर्शा कर जैन कानून बनाया जाना आवश्यक ठहराया है। The times in which we live require a revision of our customary old cade and ways of living. Institutional religions long-established are being २१

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