Book Title: Mahavira Smruti Granth Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain, Others
Publisher: Mahavir Jain Society Agra

View full book text
Previous | Next

Page 319
________________ World Peace. BY AIrss DAPHINE MCDOWALL, Germany. श्रीमती कुमारी मैकडोवल अग्रेज महिला हैं और अमरीकन सैनिक क्षेत्रमें सेवाकार्य कर रही हा विश्वशान्ति पर उनके विचार पठनीय है। वह लिखता है कि तीन साल पहले जब पिडला महाखुद समाप्त हुआ तब में बड़ी आशा लेकर जर्मनी आई थी। मुझे भाशा थी कि वहां पहुंचकर पुद्गल बादमें ईसी हुई दुनियाको आध्यामबादका विश्वासी धनाकर भागे बढाऊँगी। मुझे विश्वास था कि नवजीवन के निर्माणका श्रीगणेश वहाँसे हो सकेगा। नैसर्गिक अथवा प्रेरित कार्य कैसामी हो सदा भपना फल दिखाता है। विचारों के भी अपने परिणाम होते है । फिर वे शायद भलेही कार्यकपन घ्रि परिणत न किए जा सके। जैसे को तैसा मिलताही है । अतः हिंसासे हिंसा और द्वेषसे दूध पनपतेही है । जो युद्ध हिंसा, द्वेष और करतासे लडे जाते हैं, उनसे हिंसा द्वेष और क्रूरताही "है । गत महायुद्ध अपने पीछे एक महान पीडा छोड़ गया है । इस पीडाके कारण मानव एक १९६ दक्ष कर रहे हैं। और यह देष घढले बढते एक दूसरे महायुद्ध में परिणत हो सकता है। कार्यधारणका सिद्धान्तही यह है कि जो असा बोयेगा वह वैसा पायेगा। हा, इस विशेष वातावरणको एक मात्र उपाय प्रेम-पवित्र और निःस्वार्थ प्रेमही हो सकता है। जैसे एक घरमें प्रेम न होतो दाख और झंझट ही उसमें होती हैं। वहीं हाल दुनियाका है । किन्तु जिस घरम । पम रहता है वहाँ स्नेह सुख और शाति फैलती है | अत. यदि लोकके अधिकांश एक दूसरे के प्रति सच्चा प्रेम व्यवहार करें तो युद्ध होही नहीं सकता यह निखिल सत्य है इसक प्राप्त करनेका ही प्रयत्न होना चाहिए किन्तु दुनिया में ऐसभी लोग हैं, जो इस सत्यकी मन मानते है | पर उनको भी यह सत्य माननाही पड़ेगा। जिन्हें विश्व प्रेमको शक्ती में विश्वास ना शाक लगा कर उसका विकास बोर करना चाहिए जिससे दूसरे लाग उसका अनकर, उसे देखें और उसके अनुसार व्यवहार करें । गरीबसे गरीब मानव मी क्षणभरके लिए हुए विना नहीं रह सकता। इस ममावसे वह शक्ति सचय करता जायेगा । त्रुटियों और कि बीच में निकल कर वह बहुत कछ सीख लेगा। हमारे दैनिक जीवनपर वैयक्तिक अनुआतरिक सामूहिक अनुभवोंका भी असर होता है। हजारों युद्ध लडे जा चुके हैं तो भी ६ नहीं समझ पाया है कि युद्धसे घरवादी होती है और मानव उन्नतिमें दावा पड़ती है। एक जबतक अनुभव विशेषसे मान शिक्षाको ग्रहण नहीं कर लेता तक्तक वह उसीमें पड़ा रहता समय प्रेम कभी सुख नहीं सिस्न सकता मानवको यह विश्वास है तो वह निस्वार्थ भाव पार प्रेम करें और जहा वह व्यक्तिसे निःस्वार्थ प्रेम करनेका अभ्यस्त होगा तो समिष्टीसे भी लोक यह नहीं समझ पा है। सार्धमय प्रेम कभी सुखन निःस्वार्थ प्रेम करने लगे। बहुत कम व्यक्ति हैं जो अपने अनुभवोंसे लाम उठाते है । त्रुटियोंको वे दुहराते रहते हैं। इ पानता है कि शारीरिक दुर व्यवहारसे दुःख होगा पर फिरभी लोग वैसा करते है । ऐसे तो बहुत थोडे हैं जो अपने अनमोका पर्यायवेक्षण करके शिक्षा ग्रहण करते हैं। ऐसेमी मनुष्य " पाथिय हानियां उठाते रहते हैं, किन्तु उन्हें यह अनुभव नहीं होता कि जबतक वह पार्थिव है, जो पार्थिव हानियाँ २९५

Loading...

Page Navigation
1 ... 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363