Book Title: Mahavira Smruti Granth Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain, Others
Publisher: Mahavir Jain Society Agra

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Page 346
________________ Thoughts for World-Peace, By Mrs. EYBLIN S KLEINSCHMIDT, Downer's Grove, III, U. S. A. [श्रीमती क्लीन स्मिथ अमेरिकाकी विचारशील भद्रमहिला है। सन् १९३३ में जब शिकागोके विश्वधर्म सम्मेलनमें स्व. वैरिस्टर चम्पतरायजी जैन सम्मिलित हुये तो वह उनके भाषणसे प्रमाविस हुई-श्री जैनजीको उन्होंने अपना गुरु माना और सनसे जैनधर्मकी शिक्षा ली। प्रस्तुत लेखमें उन्होंने इस प्रसगका उल्लेख करके लिखा है कि यद्यपि वह बाह्यजगतके कार्योंमें सफल मनोरथ थीं, फिरमी उनका जीवन शून्यवत् था । जीवन का प्रयोजन उनको जनजीके सदेशसे मिला । हर कोई जीवन में सुख, शान्ति चाहता है, किन्तु उसके लिये करना कुछ भी नहीं चाहता । अनेक जन्मोंसे दैनिक जीवनचक्र-खाना, पीना, सोना, जागना प्रत्येक व्यक्ति करता आया है, किन्तु किसी ने भी जीवन के उश्य और गतिको जानने का प्रयत्न नहीं किया। दूसरोंके सत्कर्ष पर ईष्यों क्या कर्मसिद्धात पर ध्यान दे तो प्रत्येक मानव स्वतः उन्नतशील हो । जैसा बोओगे ऐसा पाओगे। पशुपक्षी, वनस्पति, पाषाण, मानव-सवहीमें परमात्मरूप जीवन चमक रहा है। किन्तु दुनियाके लोग अच्छी बातोंको देखही नहीं रहे हैं। लोकमें युद्ध, हत्या, मानववत्र और पशुहत्या आये दिन होते हैं। इनका ही फल लोकको दुख, शोक, रोग और पीडामें मिल रहा है। कर्म सिद्धान्सको कोई बदल नहीं सकता । लोकके समी महामाोंने प्रेम और अहिंसाका उपदेश दिया; किन्तु मानवने अपने जीवन में प्रेम और महिंसाका व्यवहार करना नहीं सीखा । परिणाम लोककी भयकर स्थिति है। अब तो बहुत युद्ध लड़ चुके । क्या यह समय नहीं है कि मानव अहिंसामय शिष्ट जीवन विताना सीखें ! अब मानव हत्या-हत्याही क्यों करता रहे ? द्वेष और प्रतिहिंसाको आगमें मानव क्यों जलता रहे ? क्या किसी युद्धसे लोकका भला हुआ है ? कदापि नहीं ! तलपारसे जीवित रहनेवाला तलवारसे मरता है । अवतक मानव दिव्य जीवनका जिज्ञासु नहीं तबतक उसका कुछ महत्व नहीं । जब उसकी भावना सार्वहितके लिए जागृत होगी और उसका जीवनव्यहार लोकके लिये होगा, तभी उसका जीवन सार्थक है । भ० महावीरको शिक्षामी लोककल्याणके लिये है। विधशान्तिका उपाय अहिंसा और सत्य आत्मधर्म है। -का०प्र०] The late Mr. Champat Rai Jain, was at one time my teacher, both here in the United States and later in London, England Our association was most pleasant and profitable and my esteem and regard for him are boundless He found me at a time when my experiences had proven to me, that Without some kind of firm foundation, this life was profitless and dull I was looking for something to lift me out of depression. Inspite of the fact that my life had been full and rich and I had done all the things in the outer world that I had wanted to do, still it seemed empty and devoid of meaning. We all want peace, happiness, security and a feeling of being worth while That is the innermost desire of every one on earth, I believe, but hopy many of us are willing to do the things that will BRING these qualities રરર

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