Book Title: Mahavira Smruti Granth Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain, Others
Publisher: Mahavir Jain Society Agra

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Page 316
________________ २९२ भ० महावीर-स्मृति-ग्रंथ । सकते हैं । मनुष्यको लाभकर है, नींवूका रस विल्ली और खरगोशके लिये विष है। कपूरसे किनारी नामका जानवर मर जाता है। कबूतर अफीम अधिकाशमें खा लेता है। ऐसे अनेक उदाहरण है। हमारे शरीरको वनावट भोजनपर निर्भर है । अतएव उचित भोजन जो शाकाहार है उसको विधिवत ग्रहण करनेसे असाधारण रुकावट नहीं होती और शरीर हष्टपुष्ट ठीक विचारोंको उत्पन्न करने में सहायक होता है। यह धारणाभी गलत है कि माससे मास उत्पन्न होता है, क्यों कि पकने पर उसके जीवित कण नहीं रहते और कण भी मिन्न होते हैं | मास भोजन मानवको पशु बना देता है। में अब यह बताता है कि मांसाहारी जानवरों और मनुष्योंमें क्या अन्तर है। जितने भी मास खानेवाले नानवर है उनकी आते छोटी होती है; जैसे शेर । उसकी मात १५ फीट लम्बी होती है । इसके विपरीत, जिवने जीव सतोपी शाकाहारी अथवा मांस न खानेवाले हे उनकी आते २६ से ३० फीट तक लम्बी होती है, जिससे साग पात लाबे समय तक सहगल कर पाचनक्रियामै रस बना सके. इसी प्रकारसे मनुष्य और मासभक्षी पशुके दांतोंमें भी अन्तर है। यदि एक वन्दरको वद करके मास खिलाया जाये तो उसे तपेदिक हो जायेगी । सागके भोजनसें कई ऐसे सुन्दर अमूल्य पदार्थ है जो मनुष्यको हष्टपुष्ट रखनेमें लाभकारी होते हैं। सबको न बताकर केवल एक सोयाबीनका ही उल्लेख करूंगा । इसमें लेसीथीन और फासफोरस ब्रहमाइडकी शक्तिके लिये ठीक अनुपातसें होता है । इसमें वेसीलिस एसिडोफिस्स अर्थात् एक प्रकारके आतके कीटाणु जो भोजनकी पाचनक्रिया करते हैं अधिक काल तक जीवित रह सकत और बढ सकते हैं। अतः सोयावीन मासको अपेक्षा कहीं अधिक उत्तम वस्तु मोजनकी है। ऐसा देखा गया है कि बच्चा पैदा होते समय दृष्टपुष्ट होते हुयेभी २० या २१ वर्षकी युवावस्थामें जब उसे त्वस्य होना चाहिये, रोगी बन जाते हैं, यह भोननकी ही एव आचार । विचारोंका ही दुर्घभाव होनेका फल है । प्रत्येक जीवको अपनी उत्पत्ति और बढान कालके अग्गुने समयतक जीवित रहना चाहिये, परन्तु मनुष्यकी आयु दूनी मी कठिनतासे हो पाती है। यह सब केवल ठीक और विधिपूर्वक भोजन न प्राप्त करनेकाही दुष्परिणाम है बहुतसे पदार्थोंको मुख्यांश छील कर या अधिक पकाकर नष्ट कर दिया जाता है अथवा मसालोसे स्वादिष्ट बनानेके लिये ऐसा भोजन किया जाता है जो अवडियोंकी अतरझिल्लीको जलाकर छिन्नभिन्न कर देते हैं और पेचिश इत्यादि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अतएव इन्द्रिलिप्ता और पैशाचिकवाको छोडकर मानवको उचित है कि वह दयाभाव उत्पन्न करे । शरीर पोषण और स्वास्थ्य वर्धन के लिये वह ठीक और स्वाथ्यकर शाकाहारको ग्रहण करे । लोकके सभी महापुरुष शाकाहारी हुये हैं। म. महावीरही अहिंसाके अवतार थे | उनके उपदेशसे मारवमें शाकाहार विज्ञानको विशेष उलति हुई थी। उनके अतिरिक्त श्री गौतमवुद्ध ईसामसीह मुहम्मद सा० ऋषि दयानंद एवं विश्व विभात म. गाधीके जीवनचरित्र पढिये और दखिये कि वे अहिंसापत्तिको धारण करके ही महान् हुये थे । शाकाहारही श्रेष्ठ भोजन है ।

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