Book Title: Mahanishith Sutram
Author(s): Padmasenvijay, Kulchandravijay
Publisher: Jain Sangh Pindwada
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श्री महानिशीथ सूत्रम् - अध्य० १
गगो दोसो य मोहो य मिच्छत्तं घणचिक्कणं । संमग्गणासो तह य, एगेऽजस्सित्तमेव य ॥२२॥ आणाभंगमबोही य, ससल्लत्ता य भवे भवे । एवमादी पावसल्लस्स, नामे एगट्ठिए बहू || २३॥ जेणं सल्लियहिययस्स, एगस्सी बहु भवंतरे । सव्वंगोवंगसंधीओ, पसल्लति पुणो पुणो ||२४|| से यदुविहे समक्खाए, सल्ले सुहुमे य बायरे । एक्क्के तिविहे ए, घोरुग्गुग्गतरे तहा ||२५|| घोरं चउब्विहा माया, घोरुग्गं माणसंजुया माया । माया लोभो य कोहो य, घोरुग्गुग्गयरं मुणे ||२६|| सुहुमबायरभेएणं, सप्पभेयं पिमं मुणी । अइरा समुद्धरे खिप्पं, ससल्ले णो वसे खणं ||२७|| खुड्डलगित्ति' अहिपोए, सिद्धत्थयतुल्ले सिही । संपलल्गे खयं णेइ, णरपुरे विज्झाइ ||२८|| एवं तणुतणुयरं, पावसल्लमणुद्धियं । भव-भवंतरकोडीओ, बहुसंतावपदं भवे ।। २९ ।। भयवं सुदुद्धरे एस, पावसल्ले दुहम्पए । उद्धरिउंपि ण याणंती, बहवे जहमुद्धरि ||३०|| गोयम ! निम्मूलमुद्धरणं, निययमेतस्स भासियं । सुदुद्धरस्ससावि सल्लस्स, सव्वंगोवंगभेदिणो ||३१|| सम्मद्दंसणं पढमं, सम्मं नाणं बिइज्जियं ।
तइयं च सम्मचारितं, एगभूयमिमं तिगं ॥ ३२॥
अयशस्वित्वमिति । २. खुडलगे वि पाठान्तरमिति । ३. नरयुक्तं पुरं व्याप्नोतीति । ४. दुःखप्रदमिति ।

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