Book Title: Mahanishith Sutram
Author(s): Padmasenvijay, Kulchandravijay
Publisher: Jain Sangh Pindwada
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श्री महानिशीथ सूत्रम्
9.
दुट्टं वइकायचेट्टं मणसि य कलु जुज्जयंते चरंते । निद्दोसं तं च सिट्टे ववगयकलुसे पक्खवायं विमुच्चा, विक्खंतच्चंतपावे कलुसियहिययं दोसजालेहिं णट्टं ||११|| परमत्थ-तत्तसिद्धं, सब्भूयत्थपसाहगं ।
तब्भणियाणुट्टाणेणं, जे आया रंजए सकं ||१२|| तेसुत्तमं भवे धम्मं, उत्तमा तवसंपया ।
उत्तमं सीलचारित्तं, उत्तमा य गती भवे || १३|| युग्मम् ।। अत्थेगे गोयमा ! पाणी, जे एरिसमवि कोडिं गए । ससल्ले चरती धम्मं, आयहियं नावबुज्झई ||१४|| ससल्लो जइवि कट्टुग्गं, घोरं वीरं तवं चरे । दिव्वं वाससहस्संपि, ततोऽवी तं तस्स निष्फलं ।।१५।। सल्लंपि भन्नई पावं, जं नालोइयनिंदियं । न गरहियं न पच्छित्तं, कयं जं जह य भाणियं ||१६|| मायाडंभमऽकत्तव्वं, महापच्छन्नपावया ।
'अयज्जमणायारं च, सल्लं कम्मट्ठसंगहो ||१७|| असंजम - अहम्मं च, निसीलव्वतता वि य । सकलुसत्तमसुद्धी य, सुकयनासो तहेव य || १८ || दुग्गइगमणऽणुत्तारं, दुक्खे सारीरमाणसे । अव्वोच्छिन्ने य संसारे विग्गोवणया महंतिया ||१९|| केसि विरुवरुवत्तं दारिद्ददोहग्गया । हाहाभूयसवेयणया, परिभूयं च जीवियं ||२०||
निग्घिण-नित्तिंस - कूरत्तं, निद्दय - निक्किवया विय । निलज्जत - गूढहियत्तं वंकं विवरीयचित्तया ||२१|
अवद्यमनाचारं चेति । यदिवाऽकार्यमित्यादि ।
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