Book Title: Mahabharat Samhita Part 01
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

View full book text
Previous | Next

Page 816
________________ 4. 5. 8] महाभारते [4. 6.2 संप्राप्य नगराभ्याशमवतारयदर्जुनः // 8 तस्य मौर्वीमपाकर्षच्छूरः संक्रन्दनो युधि // 22 स राजधानी संप्राप्य कौन्तेयोऽर्जुनमब्रवीत् / दक्षिणां दक्षिणाचारो दिशं येनाजयत्प्रभुः / क्वायुधानि समासज्य प्रवेक्ष्यामः पुरं वयम् // 9 अपज्यमकरोद्वीरः सहदेवस्तदायुधम् // 23 सायुधाश्च वयं तात प्रवेक्ष्यामः पुरं यदि। खगांश्च पीतान्दीर्घाश्च कलापांश्च महाधनान् / समुद्वेगं जनस्यास्य करिष्यामो न संशयः / / 10 विपाठान्क्षुरधारांश्च धनुर्भिनिदधुः सह // 24 ततो द्वादश वर्षाणि प्रवेष्टव्यं वनं पुनः / तामुपारुह्य नकुलो धनषि निदधत्स्वयम् / .. एकस्मिन्नपि विज्ञाते प्रतिज्ञातं हि नस्तथा // 11 यानि तस्यावकाशानि दृढरूपाण्यमन्यत // 25 अर्जुन उवाच / यत्र चापश्यत स वै तिरो वर्षाणि वर्षति / इयं कूटे मनुष्येन्द्र गहना महती शमी / तत्र तानि दृढैः पाशैः सुगाढं पर्यबन्धत // 26 भीमशाखा दुरारोहा श्मशानस्य समीपतः // 12 शरीरं च मृतस्यैकं समबध्नन्त पाण्डवाः / न चापि विद्यते कश्चिन्मनुष्य इह पार्थिव / विवर्जयिष्यन्ति नरा दूरादेव शमीमिमाम् / उत्पथे हि वने जाता मृगव्यालनिषेविते // 13 आबद्धं शवमत्रेति गन्धमाघ्राय पूतिकम् / / 27 समासज्यायुधान्यस्यां गच्छामो नगरं प्रति / अशीतिशतवर्षेयं माता न इति वादिनः / एवमत्र यथाजोषं विहरिष्याम भारत // 14 कुलधर्मोऽयमस्माकं पूर्वैराचरितोऽपि च / वैशंपायन उवाच / समासजाना वृक्षेऽस्मिन्निति वै व्याहरन्ति ते // 28 एवमुक्त्वा स राजानं धर्मात्मानं युधिष्ठिरम् / आ गोपालाविपालेभ्य आचक्षाणाः परंतपाः / प्रचक्रमे निधानाय शस्त्राणां भरतर्षभ // 15 आजग्मुर्नगराभ्याशं पार्थाः शत्रुनिबर्हणाः // 29 येन देवान्मनुष्यांश्च सांश्चैकरथोऽजयत् / जयो जयन्तो विजयो जयत्सेनो जयद्बलः / स्फीताञ्जनपदांश्चान्यानजयत्कुरुनन्दनः॥ 16 इति गुह्यानि नामानि चक्रे तेषां युधिष्ठिरः // 30 तदुदारं महाघोषं सपत्नगणसूदनम् / ततो यथाप्रतिज्ञाभिः प्राविशन्नगरं महत् / अपज्यमकरोत्पार्थो गाण्डीवमभयंकरम् // 17 अज्ञातचर्यां वत्स्यन्तो राष्ट्र वर्षं त्रयोदशम् // 31 येन वीरः कुरुक्षेत्रमभ्यरक्षत्परंतपः / इति श्रीमहाभारते विराटपर्वणि पञ्चमोऽध्यायः // 5 // अमुश्चद्धनुषस्तस्य ज्यामक्षय्यां युधिष्ठिरः // 18 पाञ्चालान्येन संग्रामे भीमसेनोऽजयत्प्रभुः / वैशंपायन उवाच / प्रत्यषेधदहूनेकः सपत्नांश्चैव दिग्जये // 19 ततो विराटं प्रथमं युधिष्ठिरो निशम्य यस्य विस्फारं व्यद्रवन्त रणे परे। ___ राजा सभायामुपविष्टमाव्रजत् / पर्वतस्येव दीर्णस्य विस्फोटमशनेरिव // 20 वैडूर्यरूपान्प्रतिमुच्य काञ्चनासैन्धवं येन राजानं परामृषत चानघ / नक्षान्स कक्षे परिगृह्य वाससा // 1 ज्यापाशं धनुषस्तस्य भीमसेनोऽवतारयत् // 21 नराधिपो राष्ट्रपतिं यशस्विनं अजयत्पश्चिमामाशां धनुषा येन पाण्डवः / महायशाः कौरववंशवर्धनः / -806 -

Loading...

Page Navigation
1 ... 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886