Book Title: Madhyakalin Gujarati Sahityana Itihas Lekhannu Swarup Author(s): Balwant Jani Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासलेखननुं स्वरूप बळवंत जानी * साहित्यना इतिहास आलेखक पासे साहित्यनी बदलाती विभावनानी ज मात्र समज नहीं परंतु इतिहासनी बदलाती विभावनानी समज पण होवी अनिवार्य छे. एकवीसमी सदीना प्रथम चरणमां आपणी समक्ष नव्य इतिहासवादनी विचारधारा छे अने एकाद दायकाथी आपणे त्यां नव्य इतिहासवाद विषये चर्चा थती रही छे. हकीकते आ विचारधारामां वस्तुलक्षितानो तथा सत्य विषये शंका सेवनारनो बहु मोटो महिमा छे. ए माटे एमां विशेष रीते त्रण बिन्दुओनी चर्चा थयेली छे. १. रचनावाद (कन्स्ट्रक्टिव) विचारधाराने आधारे इतिहास रचवो ते इम्पोझीशन आरोप छे. २. विरचनावादी (डी- कन्स्ट्रक्टिव) नेरेटिव - कथनात्मक सर्जनात्मक अभिव्यक्ति भाषा - शंकास्पद-माध्यम छे। ३. पुन: रचनावादी (री- कन्स्ट्रक्टिव) अनुभववादी पुनः कथन करे छे. कन्स्ट्रक्टिव, डि कन्स्ट्रक्टिव अने रिकन्स्ट्रक्टिवमांथी शुं केवी रीते खपमां लेवुं एनो विवेक जाळववो जरूरी छे. आपणे आपणने पथ्य विचारने प्रसराववानो होय. नव्य इतिहासवादमां इतिहासनी नहीं पण साहित्यना इतिहासनी वात केन्द्रमां छे. साहित्यनो संदर्भ लईने देरिदाथी अनुप्रमाणित ग्रीम ब्लेटनी चर्चा पण ध्यानार्ह छे. आ बधी विचारधारा आपणी ज्ञानविभावनाने समृद्ध करती होय छे. अभ्यासीओ पासे एनो संदर्भ होवो जोईए. कृतिनी पार्श्वभूमिमां के पश्चादभूमां कशुं नधी, बधुं कृतिनी साथे ज ★ कुलपति, उत्तर गुजरात युनिवर्सिटी, पाटण- ३८४२५६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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