Book Title: Madhyakalin Gujarati Sahityana Itihas Lekhannu Swarup Author(s): Balwant Jani Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ 99 थवी जोईए. धर्मांतरित प्रजाना सर्जकोए तळपदां गुजराती साहित्य स्वरूपो खपमां लोधां अने प्रभाव झीलीने परंपराने समृद्ध करवामां, विस्तारवामां जे योगदान आप्यु ए पण एक महत्त्व, प्रकरण इतिहास माटे बनवू जोईए. (१२) वैष्णव संप्रदायना हालारी लोहाणा परंपसथी फंटाया अने एक नूतन संप्रदाय अस्तित्वमा आव्यो ते 'प्रणामी पंथ' तथा ए ज रीते वैष्णवमाथी फंटायेल अने उद्भवेल 'स्वामीनारायण पंथ' आवा पंथो-संप्रदायोना उद्भव परिबळोने पण इतिहासलेखनमां स्थान मळवू जोईए. प्रणामी संप्रदायना परिव्राजक कवि प्राणनाथ स्वामी बहुभाषी कवि छे. एनी पाछळनुं परिबळ, स्वामीनारायण संतकवितानी तळपदी बानी पाछळनु परिबळ ध्यानमां लेवां अनिवार्य छे. (१३) मध्यकाळमां मुस्लिम - मोगल राजवीओ समक्ष खतपत्रो, वाद विवादो, प्रतिवादना प्रसंगो एक संप्रदायने उपस्थित थयेला. जैन हीरविजयसूरी, प्राणनाथ अने अन्य पंथना संतोना आवा प्रसंगो साहित्यसर्जन संदर्भमां खूब महत्त्वना होय छे. सांस्कृतिक संदर्भ एमां निहित होय छे. एमांनां तथ्यो, परंपरामां प्रचलित विगत अने लोकसांस्कृतिक आधारसामग्रीनी चकासणी, मूलवणी अने अंते एने कृति-कर्ता मूल्यांकन संदर्भे स्थान मळवू जोईए. आ बधुं संदर्भात्मक साहित्य (रेफरन्शियल लिटरेचर) आवा संदर्भो द्वारा ज उकले - मर्मकोश सुधी आपणने पहोंचाडे. एटले इतिहासलेखनमां आ सामग्री पण समाविष्ट थवी जोईए. (१४) मध्यकालीन साहित्य सर्जननी प्रवृत्ति अने प्रेरकबळोनी विगतो खूब महत्त्वनी जणाई छे. आपणे त्यां महेताजीओ, कथाकारोने कथा कही संभळावे अने एनी असरंतळे आख्यानसर्जन थाय एवा निर्देशो अनेक आख्यानकारोए कर्या छे. मध्यकालीन दस्तावेजी सामग्रीमा पाठशाळाकाव्यशाळाना निर्देशोयुक्त दानपत्रो, खतपत्रो, काव्यप्रतो मळे छे. भूजनी 'राओ लखपत व्रजभाषा पाठशाळा' चारसो वर्ष सुधी क्रियाशील रहीने पचास वर्ष पूर्वे ए बंध पडी एनी विगतो-इतिहास एकत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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