Book Title: Madhyakalin Gujarati Sahityana Itihas Lekhannu Swarup
Author(s): Balwant Jani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ (६) (७) (८) 97 में ताजेतरमां नरसिंहनी रचनाओनुं आवुं विभाजन करीने अभ्यास आरंभ्यो छे, अने त्रणेय धारामां नरसिंहनी पदसर्जन संदर्भे जे कथनरीति मळे छे अनुं विश्लेषण करवा धार्युं छे. नरसिंहमा हस्तप्रत आधारित पद परंपरानी, मौखिक लोकढाळ परंपरानी अने मौखिक संतवाणी परंपरानी एम त्रण धाराओ जोवा मळे छे. आ आखो स्वाध्याय खूब ज रसप्रद छे. मूळभूत प्रश्न इतिहासमां आवी अध्ययनपद्धति अखत्यार करवानी पद्धतिनो छे. पदबंधमां ढाळ आधारित निरूपण विशेष छे. डॉ. हरिवल्लभ भायाणीए 'लोस्ट कृष्णपोएम्स' एवं एक शोधपत्र तैयार करेलुं जेमां चौदमीपंदरमी शताब्दीनी रासकृतिओमां भासना आरंभे ढाळनी कडी रूपे जे पंक्तिनो निर्देश थयो होय एने आधारे ए समयनी प्रचलित परंपरित रचनाओनो निर्देश करीने आपणे केटलं गुमावी रह्या छीए एनो एक आलेख आपेलो. आ ढाळसूचिमां केटलाक ढाळ लिखित परंपरानी अत्यंत प्रचलित रचना पण छे. समयनिर्णय करवा माटे आ ढाळ पण अत्यंत उपयोगी सामग्री छे एटले इतिहासलेखनमां एनो समावेश पण आवश्यक जणाय छे. मध्यकालीन जनमानस समाजसंदर्भ पण इतिहासमां स्थान पामवो जोईए. पदयात्रीओ धून बोले, रात्रे भजन-कीर्तन थाय, पदगान, पूजा-अर्चना अने धार्मिक उत्सव प्रसंगे तहेवारे प्रसंगे आख्यान, रास, प्रस्तुतिकरण, गरबी - गरबा, घोळ आ बधा रजूआत माटेना स्वरूपोनी जीवंततानो परिचय मात्र स्क्रिप्टथी न थाय. वाचनानी रजूआत समयनो संदर्भ ए कृतिथी पूरा परिचित थवा माटेनी अनिवार्य विगत छे. संदर्भने विसारे पाडीने नरी कृतिनुं ज मात्र मूल्यांकन कर ए एक जोखम छें. अर्वाचीन के आधुनिक साहित्यनी रीतिनीतिए मध्यकालीन रचनानुं मूल्यांकन करवानुं अनुचित छे. - मूळ प्रभावरूप स्थानो, कर्ताओ अने कृतिओनो निर्देश पण इतिहासलेखनमां अनिवार्य छे. आ माटे ए बाबत केन्द्रमां रहे. एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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