Book Title: Madhyakalin Gujarati Sahityana Itihas Lekhannu Swarup
Author(s): Balwant Jani
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासलेखननुं स्वरूप बळवंत जानी * साहित्यना इतिहास आलेखक पासे साहित्यनी बदलाती विभावनानी ज मात्र समज नहीं परंतु इतिहासनी बदलाती विभावनानी समज पण होवी अनिवार्य छे. एकवीसमी सदीना प्रथम चरणमां आपणी समक्ष नव्य इतिहासवादनी विचारधारा छे अने एकाद दायकाथी आपणे त्यां नव्य इतिहासवाद विषये चर्चा थती रही छे. हकीकते आ विचारधारामां वस्तुलक्षितानो तथा सत्य विषये शंका सेवनारनो बहु मोटो महिमा छे. ए माटे एमां विशेष रीते त्रण बिन्दुओनी चर्चा थयेली छे. १. रचनावाद (कन्स्ट्रक्टिव) विचारधाराने आधारे इतिहास रचवो ते इम्पोझीशन आरोप छे. २. विरचनावादी (डी- कन्स्ट्रक्टिव) नेरेटिव - कथनात्मक सर्जनात्मक अभिव्यक्ति भाषा - शंकास्पद-माध्यम छे। ३. पुन: रचनावादी (री- कन्स्ट्रक्टिव) अनुभववादी पुनः कथन करे छे. कन्स्ट्रक्टिव, डि कन्स्ट्रक्टिव अने रिकन्स्ट्रक्टिवमांथी शुं केवी रीते खपमां लेवुं एनो विवेक जाळववो जरूरी छे. आपणे आपणने पथ्य विचारने प्रसराववानो होय. नव्य इतिहासवादमां इतिहासनी नहीं पण साहित्यना इतिहासनी वात केन्द्रमां छे. साहित्यनो संदर्भ लईने देरिदाथी अनुप्रमाणित ग्रीम ब्लेटनी चर्चा पण ध्यानार्ह छे. आ बधी विचारधारा आपणी ज्ञानविभावनाने समृद्ध करती होय छे. अभ्यासीओ पासे एनो संदर्भ होवो जोईए. कृतिनी पार्श्वभूमिमां के पश्चादभूमां कशुं नधी, बधुं कृतिनी साथे ज ★ कुलपति, उत्तर गुजरात युनिवर्सिटी, पाटण- ३८४२५६५ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताणावाणानी माफक संयोजायेल छे ए साहित्यना इतिहासलेखकनी नजरमां रहेQ जोईए. आम साहित्यना इतिहासलेखक माटे कशुं ज साहित्येतर नथी. बधुं साहित्य संलग्न छे. एटले साहित्यसंलग्न संज्ञा ज उचित जणाय छे. आ बधी अद्यतन विचारधारा अने ज्ञानमीमांसानी अनुपलब्धि समये पण प्राप्य साधनोने आधारे आपणे त्यां साहित्यना थोडा इतिहासो लखाया छे ए कार्य मारी दृष्टिए भारतीय भाषाओमां आपणने गौरव अपावे एवं ज छे. आ कारणे में अहीं इतिहासलेखन बाबतनी आपणा विद्वानोनी विभावनानो प्रारंभे ढूंकमां परिचय करावीने पछी मारा अभ्यासने-अनुभवने आधारे इतिहासलेखननी विगतो दर्शाववानो उपक्रम सेव्यो छे. (१) गोवर्धनराम त्रिपाठी ई.स. १८९४मां 'ध इन्फल्युअन्स ओन सोसायटी एन्ड मोरल्स' ग्रंथमां मध्यकालीन साहित्यना इतिहास आलेखनमा तेओ रचनाना प्रभावने केन्द्रमा राखीने पोताना तारणो रजू करे छे. तेओ माने छे के कर्ता समाजना संदर्भो वच्चे रहीने कृतिने जनसमुदाय समक्ष एने समजावता प्रस्तुत करतो होईने सामाजिक संदर्भ एमां प्रगट्या वगर रहे ज नहीं. तेमणे नरसिंह, भालण, मीरां, भीम, प्रेमानंद, अखो, शामळ, दयाराम एम थोडा कविओना प्रदानने नजर समक्ष राखीने समय निर्णयनी अने सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भनी विगतोने निर्देशेल छे. एमणे अहीं भक्तिकविताना आस्वादना प्रश्नोनी, मध्यकालीन साहित्यनां सौंदर्यशास्त्रनी समयनिर्णयनी अनिवार्यतानी, तथा साहित्य अने समाजना आंतर संबंधोनी भारे सूझथी चर्चा करी छे. मारी दृष्टिए गोवर्धनरामनी इतिहासलेखननी विभावना ए विगते आलोचवा-अवलोकवा जेवी छे. (२) बीजं काम कृष्णलाल मो. झवेरी, ई.स. १९१४मा प्रकाशित 'माईल स्टोन्स इन गुजराती लिटरेचर' छे. गो.मा.त्रि.ने मुकाबले कोई सैद्धान्तिक प्रश्नोनी पीठिका न रची आपतुं होवाने कारणे साहित्यना इतिहासतुं आ पुस्तक सामान्य लागे, पण अहीं एक महत्त्वनो नवो मुद्दो चर्चायो छे. इतिहास ग्रंथमां भौगोलिक, ऐतिहासिक, भाषाकीय अने सामाजिक Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 93 सांस्कृतिक परंपरानुं चित्रण आवश्यक होय छे, एनुं तारस्वरे अनुरणन आ इतिहास ग्रंथमां संभळाय छे. कर्तानी चरित्ररेखा पर पण विशेष भार मूकायेल छे. आ बन्ने विगतो घणी महत्त्वनी छे. (३) हिंमतलाल गणेशजी अंजारियानुं ई.स. १९२२मा प्रकाशित 'साहित्य प्रवेशिका' एना युंगविभाजनने कारणे इतिहास आलेखननी पद्धतिने समजावतुं होईने एनं पण महत्त्व छे. (४) पण सौथी वधु महत्त्व कनैयालाल मुनशी द्वारा ई.स. १९२२मां संपादित 'मध्यकाळनो साहित्य प्रवाह' ग्रंथनुं छे. विविध विषयना तज्ज्ञोने निमंत्रण आपीने तैयार करावायेला अभ्यासनिबंधो अहीं स्थान पाम्या छे. ग्रंथनुं माळखुं पण दृष्टिपूर्ण छे. नव विभागोमां विभाजित ग्रंथमां अनेक प्रकरणो छे जे विषयनी भूमिका विगते समजावे छे. अहीं मध्यकालीन गुजरातनी राजकीय परिस्थिति हीरालाल पारेख, विजयराय वैद्य, संस्कृत साहित्य संदर्भे दुर्गाशंकर शास्त्री, जैनसाहित्य संदर्भे मोहनलाल दलीचंद देशाई, लोकसाहित्य संदर्भे मंजुलाल मजमुदार, भक्तिसाहित्य संदर्भे कनैयालाल मुनशीना लेखोमांथी इतिहास आलेखननी स्वच्छ - सुरेख एवी पोताने अभिप्रेत दृष्टिनो परिचय प्राप्त थाय छे. एमनी दृष्टिमां केटलाक महत्त्वना मुद्दाओ भळेला छे तेनुं महत्त्व घणुं छे. तेओ मानता जणाय छे के इतिहासमां विविध प्रवाहने धाराने, परंपराने स्थान मळवुं जोईए. साहित्य माटे प्रेरणास्त्रोत विगतो पण आलेखाय, प्राकृतअपभ्रंश जैन साहित्यनुं मध्यकालीन गुजराती जैन साहित्य द्वारा केवी रोते अनुसंधान - सातत्य - रचायुं - जळवायुं तेनो चितार जाणवो पण आवश्यक छे. ज्ञानमार्गी रचनाओनी तात्त्विक दार्शनिक-पीठिका जाणवी पण अनिवार्य छे. मुनशीनुं ई.स. १९३५मां प्रकाशित 'गुजरात अॅन्ड इट्स लिटरेचर' पण मध्यंकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासलेखनना बिंदुओनो परिचय करावे छे. (५) ए पछी के. का. शास्त्रीनुं 'आपणा कविओ' खंड - १ पण इतिहासलेखननी खूब ज महत्त्वनी विगतोने प्रगटावे छे. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 तेमणे हस्तप्रतोने संदर्भ इतिहासआलेखन कर्यु होईने इतिहासलेखनमां, अमुद्रित पण सूचिपत्रमा निदिष्ट एवी कृतिओनो पण अभ्यास करीने एने समाववी जोईए, तेवी विभावनानो परिचय मळे छे. तेमणे साहित्यना इतिहास निमित्ते भाषाना विकासनो इतिहास चर्चवानुं पण मुनासिब मान्युं छे. ए निमित्ते तेमनी पासेथी आपणने गुजराती भाषानुं ऐतिहासिक व्याकरण प्राप्त थाय छे. स्वरूपना प्रभावने कारणे तेमणे नामकरणमां नोमेन्कलचरमां रासयुग, आख्यानयुग एम विभाजन कर्यु छे. इतिहासलेखके स्वरूपना प्रभावनी विगतो पण ध्यानमां लेवानी रहे. कृतिनो कडीक्रमानुसार परिचय, कृतिनी पदबंधनी विगतो एमां परंपरासंदर्भ आवेल पलटाओ, वर्णनकलाना उत्तम नमूनारूप दृष्टांतोने उदाहृत करवानी एमनी दृष्टि तथा प्राचीन हस्तप्रतोने मेळवीने एमांथी पसार थईने विगतो निर्देशवी ए एमनी अभ्यासनिष्ठा- सुंदर उदाहरण छे. एमांथी आपणी पासे इतिहासलेखननी आगवी विभावना प्राप्त थाय छे. (६) अनंतराय रावळचें कार्य प्राप्त मुद्रित सामग्रीने आधारे विश्लेषण करीने इतिहासलेखननुं उदाहरण पूरुं पाडे छे. डॉ. धीरुभाई ठाकर ढूंकमां ए ज दृष्टिबिंदुथी काम चलावे छे. मूळभूत वस्तु तो आपणी पासे पुरोगामीओनी परंपरा छे पण एजें तेजस्वी अनुसंधान सातत्य जळवाय ए जरूरी छे. त्रिपाठी, झवेरी, अंजारिया, मुनशी, के.का.शास्त्री आदिनी इतिहासलेखननी विभावना आपणे तेमना कार्यना परिचय द्वारा बहु ज ढूंकमां मेळवी, ए बधी विगतो इतिहासआलेखनमां अत्यंत महत्त्वनी छे. समाज, संस्कृति, भाषा-व्याकरण, पदबंध, युगविभाजन आदि बाबतो, ऊंडी सूझथी सभर अने भारतीयसंदर्भमां विश्लेषणयुक्त मूल्यांकन मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासलेखन निमित्ते प्राप्त थाय छे. आ उपरांत मारा वांचवामां आवेल भोपाल स्थित साहित्य संस्था भारत भवननुं 'बहुवचन' नामर्नु जर्नल, तथा नामवरसिंहकृत 'दुसरी परंपराकी खोज' पुस्तक उपरांत रेने वेलेक कृत 'थीयरी ओफ लिटरेचर' अने एच.ए. वीझर संपादित उपरांत मान गुजराती साहिसभर अने भारतीय व्याकरण, पदबंध Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 95 'ध न्यू हिस्टोरिझम' जेवा ग्रंथोमांनां लखाणने अनुषंगे तथा आ विषयना मारा प्रत्यक्ष अभ्यास अने डॉ. भायाणी साहेबनी साथेनी चर्चाने आधारे पथ्यरूप जणायेली विगतो अत्रे प्रस्तुत करी छे. (१) मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासलेखननी सामग्रीना एकत्रीकरण माटे (१) तमाम हस्तप्रत भंडारना मुद्रित सूचिपत्रो, अमुद्रित सूचिपत्रो (२) एवा संदर्भग्रंथो, सामयिको अने अप्रगट महानिबंधो के जेमां मध्यकालीन कर्ता - कृतिओ विषये मूल्यांकन होय (३) बृहद काव्यसंचयो, सामयिको अने संपादनो के जेमां मध्यकालीन कर्तानी कृति आखी के आंशिक मुद्रित स्वरूपे जळवाई होय. उपरांत भजन संपादनो, धर्मांतरित प्रजाना साहित्यना संचयोमांथी कर्ताओनी यादी तैयार करी तेथी 'साहित्यकोश: मध्यकाळ' मां छे एना करतां वधु संख्यामा कर्तानी सूचि तैयार थई समयनिर्देश माटे 'साहित्यकोश' नी सामग्रीने ज अधिकृत गणीने ए अकारादिक्रमनी सामग्री अहीं संवर्धितरूपे समयानुक्रमे गोठवी बधा मळीने कुल २९०० जेटला कर्ताओने अहीं रचना ई.स., लेखन ई.स., पूर्वार्ध, उत्तरार्ध अने अनुमाने शताब्दीनी संज्ञाथी गोठवीने एमनी रचना ई.स.ना निर्देशयुक्त, पछी ले. ई.स. निर्देशयुक्त अने पछी समयनिर्देश विनानी कृतिओने निर्देशी छे, समयनिर्णयना संदर्भमां अत्यंत अधिकृत अने हस्तप्रतना प्रमाणने ज स्वीकृत गणवामां आव्युं छे. पूर्वार्ध, उत्तरार्ध अने अनुमाने शताब्दीना निर्णय माटे खास तर्कपूर्ण पद्धति अपनावी छे. (विशेष विगत माटे जुओ लेखकनो 'भालणना चरित्र अने समय विशे' लेख, फार्बस त्रैमासिक' ओक्टोबर - डिसेम्बर १९८७, पृ. ३८० थी ३८७) मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासलेखनमां परिभाषानो विनियोग पण महत्त्वनी बाबत छे तमे जो मध्यकालीन साहित्यनी परंपराना संदर्भनी विगतो आलेखता हो त्यारे अर्वाचीनकाळ एवी परिभाषा न प्रयोजाय पण उत्तरभक्तियुग जेवी परिभाषा प्रयोजवानी रहे. मुनशी, मजमुदार विजयराय वगेरेए प्रयोजेल पण छे. ए ज रीते ए परंपरानी (२) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 96 (३) रचना अर्वाचीनकाळमां दृष्टिगोचर थाय त्यारे पद-परंपरानी रचना, संतवाणी अनुप्राणित रचना तरीके एने ओळखावीने एनुं अनुसंधान अर्वाचीन के आधुनिकता साथे नहीं पण मध्यकालीन संदर्भ साथे छे एनो निर्देश करवानो होय. तथ्योनी मावजत ए एक बहु मोटो प्रश्न इतिहासलेखक सामे उपस्थित थतो होय छे, एनो सामनो करीने विगतोनी चकासणी करीने ज एने इतिहासमां स्थान अपावं - आपq जोईए. कर्ता नाम खोटुं दर्शावायु होय एटले ए विगत परंपरामां चालु रहे. चंद्रउदेनी हस्तप्रतना आधारवाळी 'विद्याविलासीनी वार्ता' अने शामळना नामे हस्तप्रतना आधार विनानी 'विद्याविलासीनी वारता' ने अवलोकतां ज ख्याल आवे छे के मूळ चंद्रउदेनी कृति अल्प फेरफार साथे शामळ नामे परंपरामां प्रचलित बनी. एटले कृतिना निर्देश संदर्भे पण आ सावधानी इतिहासलेखनमां मने अनिवार्य जणाई छे. गुजराती-साहित्यकोश (मध्यकाळ)ना आलेखन निमित्ते जयंत कोठारी द्वारा आवा शुद्धिवृद्धिनी चर्चा करता 'परब' अने त्यार पछी 'भाषाविमर्श'मां प्रकाशित थयेला दस-पंदर हप्ताओ आपणने खरी दिशा चीधे छे. मध्यकालीन इतिहास-लेखन माटे आ बधी विगतो मने हाथपोथी रूप जणाई छे. साहित्यना इतिहासमां कर्तानी चरित्रमूलक विगतो स्थान पामती होय छे. हकीकते एमां पण दस्तावेजी आधार रूपनी विगतो, प्रचलित परंपरित विगतो अने पाछळथी परंपरामां भळेली विगतो एम त्रण भागमा विभाजित करीने विगतो निर्देशावी जोईए. (जुओ 'भालणनां चरित्र अने समय विशे' फार्बस त्रैमासिक ओकटोबर-डिसेम्बर१९८७, पृ. ३८० थी ३८७) आ ज रीते हस्तप्रत आधार प्राप्त सामग्री अने परंपरामांथी प्राप्त प्रचलित सामग्री तथा पाछळथी परंपरामां मळेली सामग्री एम अलग अलग रूपे कृतिओनो निर्देश पण थवो जोईए. नरसिंहनां पदोने आ क्रमे जोईए तो एना मूल्यांकनना घणा प्रश्नो उकले छे. (४) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) (७) (८) 97 में ताजेतरमां नरसिंहनी रचनाओनुं आवुं विभाजन करीने अभ्यास आरंभ्यो छे, अने त्रणेय धारामां नरसिंहनी पदसर्जन संदर्भे जे कथनरीति मळे छे अनुं विश्लेषण करवा धार्युं छे. नरसिंहमा हस्तप्रत आधारित पद परंपरानी, मौखिक लोकढाळ परंपरानी अने मौखिक संतवाणी परंपरानी एम त्रण धाराओ जोवा मळे छे. आ आखो स्वाध्याय खूब ज रसप्रद छे. मूळभूत प्रश्न इतिहासमां आवी अध्ययनपद्धति अखत्यार करवानी पद्धतिनो छे. पदबंधमां ढाळ आधारित निरूपण विशेष छे. डॉ. हरिवल्लभ भायाणीए 'लोस्ट कृष्णपोएम्स' एवं एक शोधपत्र तैयार करेलुं जेमां चौदमीपंदरमी शताब्दीनी रासकृतिओमां भासना आरंभे ढाळनी कडी रूपे जे पंक्तिनो निर्देश थयो होय एने आधारे ए समयनी प्रचलित परंपरित रचनाओनो निर्देश करीने आपणे केटलं गुमावी रह्या छीए एनो एक आलेख आपेलो. आ ढाळसूचिमां केटलाक ढाळ लिखित परंपरानी अत्यंत प्रचलित रचना पण छे. समयनिर्णय करवा माटे आ ढाळ पण अत्यंत उपयोगी सामग्री छे एटले इतिहासलेखनमां एनो समावेश पण आवश्यक जणाय छे. मध्यकालीन जनमानस समाजसंदर्भ पण इतिहासमां स्थान पामवो जोईए. पदयात्रीओ धून बोले, रात्रे भजन-कीर्तन थाय, पदगान, पूजा-अर्चना अने धार्मिक उत्सव प्रसंगे तहेवारे प्रसंगे आख्यान, रास, प्रस्तुतिकरण, गरबी - गरबा, घोळ आ बधा रजूआत माटेना स्वरूपोनी जीवंततानो परिचय मात्र स्क्रिप्टथी न थाय. वाचनानी रजूआत समयनो संदर्भ ए कृतिथी पूरा परिचित थवा माटेनी अनिवार्य विगत छे. संदर्भने विसारे पाडीने नरी कृतिनुं ज मात्र मूल्यांकन कर ए एक जोखम छें. अर्वाचीन के आधुनिक साहित्यनी रीतिनीतिए मध्यकालीन रचनानुं मूल्यांकन करवानुं अनुचित छे. - मूळ प्रभावरूप स्थानो, कर्ताओ अने कृतिओनो निर्देश पण इतिहासलेखनमां अनिवार्य छे. आ माटे ए बाबत केन्द्रमां रहे. एक Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98 (९) प्रेरणास्रोत अने बीजं प्रभाव. आ बन्ने विगतो महत्त्वनी छे. आने आधारे साहित्यस्वरूपना विकासनां परिबळोनो परिचय प्राप्त थाय. स्वरूपने स्थापीने दृढ करनार, स्वरूप वहेतुं राखनार अने स्वरूपने विकसावनार कर्ता-कृतिओनुं महत्त्व पण इतिहासमां निर्देशावू जोईए. मध्यकालीन साहित्यसर्जन परंपरामा समुच्चयग्रंथोनो बहु मोटो प्रभाव छे. 'रिष्टसमुच्चय', 'वर्णकसमुच्चय' जेवा ग्रंथो कंठस्थ करीने आ सामग्रीनो उचित रीते विनियोग साहित्यसर्जन समये कर्ता द्वारा थतो होय ए स्वाभाविक छे. मध्यकालीन सर्जको ज्यारे काव्यशिक्षण मेळवता त्यारे आवा ग्रंथो अने प्रास-अनुप्रास, पर्यायकोश जेवा ग्रंथो पण कंठस्थ करता. जैनोमां तो पाठशाळा परंपरा अने पंडित शिक्षकोनी योजना सकळ संघ द्वारा थती हती. जैनेतरो पण आ प्रकारचं काव्यसर्जन पूर्वेनुं कविपद प्राप्ति माटेनुं शिक्षण लेता हता. परंपराथी मुखपाठ करता अने साहित्यसर्जन तरफ वळता हता. इतिहाससर्जन वेळाए आ बाबतने नजर समक्ष राखीने जे ते कर्ताए केवा प्रकारनां वर्णनो अने प्रास योजना, छंद-अलंकार योजना करी छे ते जोवानुं रहे. वर्णनो ए समुच्चयग्रंथोना आख्यान- परिणाम छे अने एनो विनियोग ए कर्तानी सूझनुं परिणाम छे ए बधुं तारण बतावq जोईए. (१०) वर्णनभातो, रचनाबंधो अने दृष्टांतमूलक उदाहरणोने कृतिमां गूंथी लेवानुं अने ए निमित्ते कृतिने कोई अर्थ प्राप्त थतो होय तो एनो पण निर्देश थवो जोईए. अभिव्यक्तिनी तराहमां वैविध्य दृष्टिगोचर थाय छे पण कयुं वैविध्य क्यारथी दृष्टिगोचर थतुं जोवा मळ्युं ? एनी तपास इतिहासआलेखकनी समक्ष होवी जोईए. आ माटे मात्र 'मुद्रित मध्यकालीन रचनाओ ज नहीं पण केटलीक बाबते तो हस्तप्रत संदर्भ सुधी पण पहोंचर्बु जरूरी छे. (११) मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासमां धर्मांतरित प्रजानी गुजराती रचनाओ स्थान पामी नथी. मध्यकालीन सर्जकोना समकालीन अने भारतीय संस्कृतिनी अनुप्राणित, अभिज्ञ, प्रभावित विगतो विधर्मीओना साहित्यमां पण केवी रीते गोठवाई, स्थिर थई ए विगत पण प्रस्तुत Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 99 थवी जोईए. धर्मांतरित प्रजाना सर्जकोए तळपदां गुजराती साहित्य स्वरूपो खपमां लोधां अने प्रभाव झीलीने परंपराने समृद्ध करवामां, विस्तारवामां जे योगदान आप्यु ए पण एक महत्त्व, प्रकरण इतिहास माटे बनवू जोईए. (१२) वैष्णव संप्रदायना हालारी लोहाणा परंपसथी फंटाया अने एक नूतन संप्रदाय अस्तित्वमा आव्यो ते 'प्रणामी पंथ' तथा ए ज रीते वैष्णवमाथी फंटायेल अने उद्भवेल 'स्वामीनारायण पंथ' आवा पंथो-संप्रदायोना उद्भव परिबळोने पण इतिहासलेखनमां स्थान मळवू जोईए. प्रणामी संप्रदायना परिव्राजक कवि प्राणनाथ स्वामी बहुभाषी कवि छे. एनी पाछळनुं परिबळ, स्वामीनारायण संतकवितानी तळपदी बानी पाछळनु परिबळ ध्यानमां लेवां अनिवार्य छे. (१३) मध्यकाळमां मुस्लिम - मोगल राजवीओ समक्ष खतपत्रो, वाद विवादो, प्रतिवादना प्रसंगो एक संप्रदायने उपस्थित थयेला. जैन हीरविजयसूरी, प्राणनाथ अने अन्य पंथना संतोना आवा प्रसंगो साहित्यसर्जन संदर्भमां खूब महत्त्वना होय छे. सांस्कृतिक संदर्भ एमां निहित होय छे. एमांनां तथ्यो, परंपरामां प्रचलित विगत अने लोकसांस्कृतिक आधारसामग्रीनी चकासणी, मूलवणी अने अंते एने कृति-कर्ता मूल्यांकन संदर्भे स्थान मळवू जोईए. आ बधुं संदर्भात्मक साहित्य (रेफरन्शियल लिटरेचर) आवा संदर्भो द्वारा ज उकले - मर्मकोश सुधी आपणने पहोंचाडे. एटले इतिहासलेखनमां आ सामग्री पण समाविष्ट थवी जोईए. (१४) मध्यकालीन साहित्य सर्जननी प्रवृत्ति अने प्रेरकबळोनी विगतो खूब महत्त्वनी जणाई छे. आपणे त्यां महेताजीओ, कथाकारोने कथा कही संभळावे अने एनी असरंतळे आख्यानसर्जन थाय एवा निर्देशो अनेक आख्यानकारोए कर्या छे. मध्यकालीन दस्तावेजी सामग्रीमा पाठशाळाकाव्यशाळाना निर्देशोयुक्त दानपत्रो, खतपत्रो, काव्यप्रतो मळे छे. भूजनी 'राओ लखपत व्रजभाषा पाठशाळा' चारसो वर्ष सुधी क्रियाशील रहीने पचास वर्ष पूर्वे ए बंध पडी एनी विगतो-इतिहास एकत्र Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 करवाथी ख्याल आव्यो के छंद-व्याकरण अने काव्यसर्जननु, प्रस्तुतिकरण, शिक्षण आपवानी एक उज्जवळ परंपरा हती एनो पण निर्देश इतिहासमां थवो जोईए. (१५) मध्यकालीन समाज संरचनामां वहीवंचा-बारोटर्नु बहु मोटुं स्थान हतुं. आ वहीवंचा बारोटनी वहीओ मात्र वंशावळीओ ज नथी. एमां तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, राजकीय विगतो पण स्थान पामती. समाजमां बनता विविध बनावोनो पण एमां समावेश थतो. प्रसंगोपात्त कवित के दोहरा-चोपाई छंदबंधमां पदाकृतिओ पण एमना द्वारा रचाती. तेओ अभिव्यक्तिना संदर्भमां सांकेतिक भाषाने प्रयोजता. पोतानी आगवी बोलीना कोश पण मळे छे. आ संकेतने (कोडने) आधारे सामग्रीने डिकोडिंग करीने, समजावीने एनो मध्यकालीन साहित्यना इतिहासलेखनमा समावेश थवो जोईए. मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासलेखननी हस्तप्रत परंपराना संदर्भमां ज्यारे विचारणा थती होय त्यारे एमां प्राचीन भारतीय कथासाहित्यनी पूर्वपरंपरानो अभ्यास-संदर्भ नजर समक्ष होवो जोईए. आगम कथानको, जातक कथानकोनो पण ख्याल होवो जोईए. तत्कालीन सामाजिक विगतोने अभिव्यक्ति अर्पवा, प्रश्नोने छणतो सर्जक घणी वखत प्राचीन कथानकोने खपमां लेतो होय छे. क्वचित दृष्टांत तरीके पण प्रयोजतो होय छे. राजकीय इतिहासनी विगतो पण आवा कारणे इतिहासलेखक समक्ष होवी अनिवार्य जणाय छे. हस्तप्रत परंपरानो संदर्भ लईने मध्यकालीन गुजराती इतिहासलेखन माटे दृष्टि समक्ष राखवाना केटलाक मुद्दाओ अहीं नोंध्या छे. आ तो एक आदर्श माळखुं छे. एमां अभिव्यक्तिना स्वरूपनो - लेखननो पण विगते विचार करवो बाको छे. तथ्यमूलक चरित्रात्मक विगतो अने समयनिर्देश तो होय पण अहीं कृतिनुं विवेचन-मूल्यांकन के मात्र परिचय ज मूकवो ? ए एक मोटो प्रश्न छे. मात्र अभिधाना स्तरे इतिहासलेखन करीने विगतोथी Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 101 भावकने परिचित करवानो उपक्रम पण आवकार्य मनायो छे. एथी भावकनेअभ्यासीने पोतानी रीते मंतव्यो बांधवानी मोकळाश रहे छे. आ स्वाध्याय निमित्ते केटलुक विगते विचारवानुं बन्यु. अभ्यास दरम्यान कर्तासूचि ज मात्र तैयार करी तो कर्ता ज त्रणेक हजार जेटला थया. एने शताब्दी अनुसार गोठवीने एनी कृतिओ नोंधीने, संदर्भो मेळवीने उपर्युक्त पद्धति - अभिगमथी इतिहासलेखन तरफ वळवू छे. ऊंडी इच्छा तो निरांते बे-त्रण सहायको साथे आवा इतिहासलेखन-मग्न बनवानी छे. अहीं ए बाबतनो थोडो-घणो स्वाध्याय प्रस्तुत करवान बन्यु एना राजीपा साथे मारा विचारने विराम आपुं छु.