Book Title: Madhyakalin Gujarati Sahityana Itihas Lekhannu Swarup Author(s): Balwant Jani Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ 98 (९) प्रेरणास्रोत अने बीजं प्रभाव. आ बन्ने विगतो महत्त्वनी छे. आने आधारे साहित्यस्वरूपना विकासनां परिबळोनो परिचय प्राप्त थाय. स्वरूपने स्थापीने दृढ करनार, स्वरूप वहेतुं राखनार अने स्वरूपने विकसावनार कर्ता-कृतिओनुं महत्त्व पण इतिहासमां निर्देशावू जोईए. मध्यकालीन साहित्यसर्जन परंपरामा समुच्चयग्रंथोनो बहु मोटो प्रभाव छे. 'रिष्टसमुच्चय', 'वर्णकसमुच्चय' जेवा ग्रंथो कंठस्थ करीने आ सामग्रीनो उचित रीते विनियोग साहित्यसर्जन समये कर्ता द्वारा थतो होय ए स्वाभाविक छे. मध्यकालीन सर्जको ज्यारे काव्यशिक्षण मेळवता त्यारे आवा ग्रंथो अने प्रास-अनुप्रास, पर्यायकोश जेवा ग्रंथो पण कंठस्थ करता. जैनोमां तो पाठशाळा परंपरा अने पंडित शिक्षकोनी योजना सकळ संघ द्वारा थती हती. जैनेतरो पण आ प्रकारचं काव्यसर्जन पूर्वेनुं कविपद प्राप्ति माटेनुं शिक्षण लेता हता. परंपराथी मुखपाठ करता अने साहित्यसर्जन तरफ वळता हता. इतिहाससर्जन वेळाए आ बाबतने नजर समक्ष राखीने जे ते कर्ताए केवा प्रकारनां वर्णनो अने प्रास योजना, छंद-अलंकार योजना करी छे ते जोवानुं रहे. वर्णनो ए समुच्चयग्रंथोना आख्यान- परिणाम छे अने एनो विनियोग ए कर्तानी सूझनुं परिणाम छे ए बधुं तारण बतावq जोईए. (१०) वर्णनभातो, रचनाबंधो अने दृष्टांतमूलक उदाहरणोने कृतिमां गूंथी लेवानुं अने ए निमित्ते कृतिने कोई अर्थ प्राप्त थतो होय तो एनो पण निर्देश थवो जोईए. अभिव्यक्तिनी तराहमां वैविध्य दृष्टिगोचर थाय छे पण कयुं वैविध्य क्यारथी दृष्टिगोचर थतुं जोवा मळ्युं ? एनी तपास इतिहासआलेखकनी समक्ष होवी जोईए. आ माटे मात्र 'मुद्रित मध्यकालीन रचनाओ ज नहीं पण केटलीक बाबते तो हस्तप्रत संदर्भ सुधी पण पहोंचर्बु जरूरी छे. (११) मध्यकालीन गुजराती साहित्यना इतिहासमां धर्मांतरित प्रजानी गुजराती रचनाओ स्थान पामी नथी. मध्यकालीन सर्जकोना समकालीन अने भारतीय संस्कृतिनी अनुप्राणित, अभिज्ञ, प्रभावित विगतो विधर्मीओना साहित्यमां पण केवी रीते गोठवाई, स्थिर थई ए विगत पण प्रस्तुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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