Book Title: Madhyakalin Gujarati Sahityana Itihas Lekhannu Swarup
Author(s): Balwant Jani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ 96 (३) रचना अर्वाचीनकाळमां दृष्टिगोचर थाय त्यारे पद-परंपरानी रचना, संतवाणी अनुप्राणित रचना तरीके एने ओळखावीने एनुं अनुसंधान अर्वाचीन के आधुनिकता साथे नहीं पण मध्यकालीन संदर्भ साथे छे एनो निर्देश करवानो होय. तथ्योनी मावजत ए एक बहु मोटो प्रश्न इतिहासलेखक सामे उपस्थित थतो होय छे, एनो सामनो करीने विगतोनी चकासणी करीने ज एने इतिहासमां स्थान अपावं - आपq जोईए. कर्ता नाम खोटुं दर्शावायु होय एटले ए विगत परंपरामां चालु रहे. चंद्रउदेनी हस्तप्रतना आधारवाळी 'विद्याविलासीनी वार्ता' अने शामळना नामे हस्तप्रतना आधार विनानी 'विद्याविलासीनी वारता' ने अवलोकतां ज ख्याल आवे छे के मूळ चंद्रउदेनी कृति अल्प फेरफार साथे शामळ नामे परंपरामां प्रचलित बनी. एटले कृतिना निर्देश संदर्भे पण आ सावधानी इतिहासलेखनमां मने अनिवार्य जणाई छे. गुजराती-साहित्यकोश (मध्यकाळ)ना आलेखन निमित्ते जयंत कोठारी द्वारा आवा शुद्धिवृद्धिनी चर्चा करता 'परब' अने त्यार पछी 'भाषाविमर्श'मां प्रकाशित थयेला दस-पंदर हप्ताओ आपणने खरी दिशा चीधे छे. मध्यकालीन इतिहास-लेखन माटे आ बधी विगतो मने हाथपोथी रूप जणाई छे. साहित्यना इतिहासमां कर्तानी चरित्रमूलक विगतो स्थान पामती होय छे. हकीकते एमां पण दस्तावेजी आधार रूपनी विगतो, प्रचलित परंपरित विगतो अने पाछळथी परंपरामां भळेली विगतो एम त्रण भागमा विभाजित करीने विगतो निर्देशावी जोईए. (जुओ 'भालणनां चरित्र अने समय विशे' फार्बस त्रैमासिक ओकटोबर-डिसेम्बर१९८७, पृ. ३८० थी ३८७) आ ज रीते हस्तप्रत आधार प्राप्त सामग्री अने परंपरामांथी प्राप्त प्रचलित सामग्री तथा पाछळथी परंपरामां मळेली सामग्री एम अलग अलग रूपे कृतिओनो निर्देश पण थवो जोईए. नरसिंहनां पदोने आ क्रमे जोईए तो एना मूल्यांकनना घणा प्रश्नो उकले छे. (४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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