Book Title: Madhya Bharat Ke Jain Tirth
Author(s): Prakashchandra Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 6
________________ सहारा लिया गया है; लेखक इस पुस्तक के लेखक व प्रकाशक के प्रति अपना आभार व्यक्त करता है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखन में विभिन्न तीर्थ-क्षेत्रों से प्रकाशित होने वाले साहित्य को भी लेखक ने आधार बनाया है वहीं देवगढ़ तीर्थ-क्षेत्र के वर्णन में 'जैन कला तीर्थ देवगढ़' पुस्तक का सहारा भी लिया गया है। इस हेतु लेखक इनके लेखकों व प्रकाशकों का आभारी है। इसके अतिरिक्त लेखक ने इस पुस्तक में वही लिखा है; जो उसने इन तीर्थ-क्षेत्रों की वंदना कर स्वयं देखा तथा अनुभव किया है। लेखक अन्त में पाठकों से अनुरोध करता है कि उसको इतिहास, पुरातत्व व धार्मिक साहित्य का पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण इस कृति में त्रुटियां रह जाने की संभावना है। अस्तु मेरी प्रार्थना है कि सुधीजन इन्हें सुधारें व मुझे भी सूचित करें ताकि अगली आवृति में उन्हें संशोधित किया जा सके। मैं श्री दशरथ जी जैन, पूर्व मंत्री छतरपुर का हृदय से आभारी हूँ; जिनकी प्रेरणा व सुझावों से यह कृति आपके सम्मुख है। मैं श्रीमती चन्द्रप्रभा जैन व मेरी जीवन-सहचरी श्रीमती राजकुमारी जैन का भी हृदय से आभारी हूँ; जिन्होंने प्रूफ रीडिंग में सहयोग किया। अन्त में लेखक केलादेवी सुमतिप्रसाद ट्रस्ट दिल्ली का हार्दिक आभार व्यक्त करना अपना पुनीत कर्तव्य समझता है जिन्होंने बहुत सुन्दर रूप में पुस्तक का प्रकाशन किया है। जैन साहित्य के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में ट्रस्ट का कार्य निश्चय ही अभिनंदनीय है। - प्रो. प्रकाश चन्द्र जैन नूतन बिहार कॉलोनी टीकमगढ़ (म.प्र.) मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 5

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