Book Title: Lok Prakash Part 02
Author(s): Vinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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(४) ख्यं । कूटं सप्तममीरितं ।। सदापरविदेहेश-निर्जरस्थानमुत्तमं ॥ ११ ॥ रम्यकक्षेत्रनाथेन । रम्यकाख्यसुधानुजा ॥ अधिष्टितं यबिष्टेष्टै-स्तन्निष्टंकितमष्टमं ।। १२ ॥ तमा चानवमझानैः । कूटं नवममोरितं ॥ उपदर्शनसंझं तदुपदर्शनदैवतं ॥ १३ ॥ एषामाये जिनगृहं । शेषेषु पुनः . रष्टसु ।। तत्तत्कूटसमाख्यानां । प्रासादाः कूटनाकिनां ।।१४।।
नक्तवदयमाणकूट-प्रासादचैत्यगोचरं ॥ स्वरूपं हिमव. स्कूट-प्रासादजिनसद्मवत ॥ १५ ॥ अस्योपरि महानेकनामनुं शिखर कहेछ जे. ॥ १० ॥ हमेशां अपर विदेहना स्वामीदेवना नत्तम स्थानरूप अपरविदेह नामे सा तमुं शिखर कहेवू . ॥ ११ ॥ रम्यकक्षेत्रना स्वामी र. म्यक नामना देवथी अधिष्टित थयेबु आठमुं रम्यक नामे शिखर जिनेश्वरोए कहेतुं . ॥ १५ ॥ वळी नपद शन नामना देववाळू उपदर्शन नामे नवमुं शिखर के. वलझानीए कहेलु . ॥ १३ ॥ तेनमा पहेला शिखरपर जिनमंदिर ने, अने बाकीना आठ शिखरोपर ते ते शिखरसरखा नामवाळा देवोना प्रासादो . ॥ १४ ॥ कहेला अने हवे कहेवाता प्रासादो तथा चैत्योसंबंधि स्वरूप हिमवंतपर्वतना प्रासाद तथा जिनमंदिरसर ने.

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