Book Title: Lok Prakash Part 02
Author(s): Vinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 14
________________ नत्तराहतोरणेन । विनिर्गत्योत्तरामुखी ॥ नारीकांता स्वप्रपात-कुंडे निपत्य निर्गता ॥ २० ॥ दक्षिणार्धरम्यकस्य । विदधाना द्विधा खबु ॥ असंप्राप्ता योजनेन | माव्यवंतं नगं ततः ॥ ११ ॥ रम्यकस्यापरभागं । विधा कृत्वा परांबुधौ ॥ षट्पंचाशवलिनी-सहस्रैर्याति संश्रिता ॥ ५॥ अस्या वार्धिप्रवेशांत । स्वरूपमादोजमात । विज्ञेयं हरिसलिला-नद्या श्वाविशेषितं ॥ ३ ॥ हृदेऽस्मिन्मूलकमलं । चतुर्योजनसमितं ॥ तदर्धार्धप्रमा णानि । पद्मानां वलयानि षट् ॥ २४ ॥ पव्योपम स्थिति नत्तरतरफना तोरणमांथी निकलीने उत्तरसन्मुख वहेती नारीकांता नदी पोताना प्रपातकुंममां पमीने, त्यांथी निकळी ॥ २०॥ दक्षिणार्धरम्यकक्षेत्रना बे विजाग करतीथकी, माव्यवंतपर्वतने एक जोजन दूर गेमीने ॥ ॥ १ ॥ त्यांथी रम्यकक्षेत्रना बीजा जागने बे नागमां वहेंची उपनहजार नदीनयी आश्रित अश्याकी पश्चिमसमुद्रमां जाय . ॥ २॥ हृदमांथी निकळवाबाद क समुडमां मळनांसुधीजें या नदीनुं स्वरूप कई पण फेर. फारविना हरिसलिला नदीनीपेठे जाणवं. ॥ ३ ॥ श्रा हृदमां मूळकमल चार जोजननुं ने, अने तेथी अरघां

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