Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ आभार प्रस्तुति जीवन का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है - स्वस्थ, सन्तुलित और गतिशील जीवनशैली। इसके लिए जरूरी है व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया में निमित्त और उपादान कारकों के प्रति सावधानी। बीसवीं सदी की तनावभरी भीड़ में मनुष्य के पास यदि हृदय की संवेदना, मस्तिष्क का विवेक-बोध और सन्तुलित कर्मजा शक्ति नहीं है तो वह प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच सन्तुलन नहीं रख सकता और न सही समय पर सही समाधान खोज सकता है। जैन दर्शन व्यक्तित्व की प्रतिक्षण बदलती पर्यायों/भावधाराओं का प्रेरक तत्त्व लेश्या को मानता है। लेश्या हमारे जीवन के बाहरी और भीतरी दोनों पक्षों से जुड़ी है। इसी के आधार पर विधेयात्मक और निषेधात्मक व्यक्तित्व की संरचना होती है। यद्यपि आगमिक आधार पर लेश्या-सम्प्रत्यय का ज्ञान दुरूहता लिए है किन्तु जब मनोवैज्ञानिक व्याख्या इसकी सैद्धान्तिक भूमिका पर की जाती है तब लगता है कि लेश्या व्यक्तित्व-निर्माण का मुख्य उत्तरदायी घटक भी है। इसका प्रायोगिक रूप मनोविज्ञान, शरीर-विज्ञान, रसायनविज्ञान तथा अध्यात्म-विज्ञान से सीधा जुड़ा है। लेश्या के द्वारा जीवन की दिशा को नया मोड़ दिया जा सकता है। लेश्या को शोध का विषय बनाना मेरे लिए मात्र एक संयोग था। कई वर्ष पहले की घटना है। होली का त्योहार था। जैन विश्व भारती के ध्यानकक्ष में ध्यान-संगोष्ठी का आयोजन हुआ। अनेक भाई-बहिनों ने होली खेली। पर, उनका होली खेलने का तरीका विचित्र था। किसी के पास भौतिक रंग नहीं थे, मानसिक रंगों की संकल्पात्मक अवधारणा मात्र थी। कोई साथी साथ में नहीं था, स्वयं को स्वयं के साथ होली खेलनी थी। संगोष्ठी के निर्देशक थे - आचार्य श्री महाप्रज्ञ । आचार्य प्रवर ने सर्वप्रथम चैतन्य केन्द्रों की प्रेक्षा करायी। साथ ही प्रत्येक केन्द्र की विशेषता एवं प्रभावकता पर प्रकाश डाला। ___ मन में जिज्ञासा उभरी - क्या रंगों का मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है ? क्या रंग-ध्यान के द्वारा हम भाव, विचार और कर्म को बदलाव दे सकते हैं ? कौन-से हो सकते हैं निमित्त और उपादान कारण इस निर्माण की प्रक्रिया में ? इन्हीं जिज्ञासाओं के समाधान हेतु लेश्या का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करने का भाव जागा और सौभाग्य से राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ने मुझे इस विषय पर शोधकार्य की स्वीकृति दी। काम छोटा हो या बड़ा, अपनी पूर्णता में समय, शक्ति तथा श्रम का सातत्य मांगता है। मुझे प्रसन्नता है कि मेरा लघु प्रयास जब पुरुषार्थ के साथ चला तो सफल परिणाम तक पहुंच गया। यद्यपि प्रस्तुत कार्य में विषय की स्पष्टता एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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