Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ प्राथमिकी उतरता, तब तक वह न तो जीवन से सीधा जुड़ सकता है और न ही उसकी उपयोगिता सिद्ध हो सकती है। वर्तमान में लेश्या-सिद्धान्त के गूढ़तम रहस्यों में छिपे मनोवैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करने का सक्रिय प्रयत्न शुरू हुआ है। प्रस्तुत ग्रन्थ इसी श्रृंखला में एक छोटा-सा प्रयत्न है जिसका मुख्य उद्देश्य है लेश्या का मनोवैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करना। इस ग्रन्थ में निम्न सन्दर्भो के आलोक में लेश्या का अध्ययन किया गया है - ० लेश्या का सैद्धान्तिक पक्ष • मनोवैज्ञानिक परिपेक्ष्य में लेश्या ० लेश्या और रंग मनोविज्ञान • लेश्या से जुड़ा आभामण्डल ० लेश्या और व्यक्तित्व निर्माण • ध्यान द्वारा लेश्या परिवर्तन लेश्या का सैद्धान्तिक पक्ष जैन-दर्शन ने लेश्या का जीव के साथ अनादि संबंध माना है। जीव जब तक कर्ममुक्त नहीं होता, आत्मा में लेश्याओं का परिणमन होता रहता है। लेश्या को कर्मबन्ध का सहायक तत्त्व कहा है। सम्पूर्ण सृष्टि का चक्र जन्म-मरण, सुख-दुःख, वैयक्तिक भिन्नतायें - सभी कर्म-तत्त्व से जुड़ी हैं पर कर्म भी आत्मा के साथ बिना लेश्या के नहीं जुड़ता। जीव और पद ल के संयोग में लश्या सेतुबन्ध का काम करती है। पट्खण्डागम में लिखा है - जो आत्मा और कर्म का संबंध कराने वाली है, वह लेश्या है। पंचसंग्रह में जिसके द्वारा जीव पुण्य-पाप से अपने को लिप्त करता है, उसे लेश्या कहा है। प्रज्ञापना की टीका में लेश्या की परिभाषा दी गई है कि जिसके सहयोग से आत्मा कर्मों में लिप्त होती है वह लेश्या है। __ आठ कर्मों में सबसे अधिक प्रभावशाली कर्म है - मोहनीय कर्म। ज्ञानवरणीय कर्म के कारण हम सही जान नहीं पाते, दर्शनावरणीय कर्म के कारण हम सही देख नहीं पाते, अन्तराय कर्म के कारण शक्ति का सही उपयोग नहीं कर पाते, परन्तु मोहनीय कर्म के कारण जानते हुए, देखते हुए, सामर्थ्य रखते हुए भी सही-सही आचरण नहीं कर पाते, आगमों में मोहनीय कर्म को राजा कहा गया है। मोहनीय कर्म ही लेश्या का पूरा विश्लेषण करता है। इसके कारण से ही लेश्या अशुभ होती है, क्योंकि राग-द्वेष को कर्मबन्ध का मुख्य हेतु बताया गया है अथवा कर्म बन्ध के ये पांच आस्रव हैं - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग। कषाय के बिना तीव्र कर्मबन्ध नहीं होता। कषाय की मन्दता और तीव्रता पर शुभनेण्या और अशुभलेश्या बनती है, क्योंकि लेश्या भावधारा पर निर्भर करती है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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