Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ प्राथमिकी 1. कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक हो (नीच कुल में उत्पन्न) - कृष्ण धर्म (पाप धर्म) करता है। 2. कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक हो - शुक्ल धर्म करता है। 3. कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक हो - अशुक्ल-अकृष्ण निर्वाण को प्राप्त होता है। 4. कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक हो - ऊंचे कुल में उत्पन्न शुक्ल धर्म (पुण्य धर्म) करता है। 5. कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक हो - कृष्ण धर्म करता है। 6. कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक हो - अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण को प्राप्त होता है। ___ यह वर्गीकरण जन्म और कर्म के आधार पर किया गया है। कायिक, वाचिक और मानसिक दुश्चरण को कृष्णधर्म और उनके सुचरण को शुक्लधर्म कहा गया है। निर्वाण न कृष्ण होता है, न शुक्ल। बुद्ध जन्मना अभिजाति में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने कर्मणा अभिजाति पर विश्वास किया, क्योंकि कर्म ही व्यक्तित्व की सही व्याख्या है। उच्चता और नीचता की रेखा मनुष्य जन्म से नहीं खींचता, कर्म के सहारे खींचता है। अभिजातियों के वर्गीकरण का मुख्य आधार वर्ण था। जैन-दर्शन में लेश्या का वर्गीकरण भी वर्ण के आधार पर हुआ है। आगमों में स्थान-स्थान पर लेश्या की परिभाषा वर्ण के आधार पर दी गई है। भगवती की टीका में कहा है - "द्रव्यतः कृष्ण लेश्या औदारिकादि शरीर वर्ण:"। ठाणं सूत्र की टीका में लिखा है - "श्लेष इव वर्णबन्धस्य कर्मबन्धस्थितिविधात्र्य:"। तत्त्वार्थराजवार्तिक में लेश्या की परिभाषा दी गई है - "शरीरनामकर्मोदयोपादिताद्रव्यलेश्या"। लेश्या एक पौद्गलिक परिणाम है इसलिए पुद्गल के सारे गुण इसमें समाहित हैं। ___गुणात्मक आरोह-अवरोह की दृष्टि से भी अभिजातियों तथा लेश्याओं के वर्गीकरण में अर्थ सामीप्य स्पष्ट झलकता है। डॉ. बाशम के अनुसार आजीवकों का विश्वास था कि संसार मुक्ति से पूर्व आत्मा को इन अभिजातियों में नियमित रूप से परिभ्रमण करना पड़ता है। जैन-दर्शन भी यही मानता है कि प्रत्येक संसारी जीव सलेशी है। आत्म-विकास के आरोहण में लेश्या के परिणामों से गुजरता हुआ वह अलेशी बनता है फिर मुक्त होता है। रंगों के आधार पर निर्धारित कृष्णाभिजाति आदि श्रेणियां एक वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करती हैं। लेश्या का संबंध व्यक्ति विशेष से संबंधित होते हुए भी वर्गणा के आधार पर कृष्णलेश्या वाले जीव सभी कृष्णलेशी कहलायेंगे। यह संज्ञा वर्ग या समूह का सूचक है । ठाणं' में वर्गणा के आधार पर जीवों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है । वर्गणा शब्द 2 1. भगवती टीका 1/9% B 3. तत्त्वार्थराजवार्तिक 9/7; . ठाणं टीका 1/15 4. ठाणं 1/51 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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