Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ प्राथमिकी हर युग अपने समय की चिन्तनधारा से जुड़ा रहता है। वह उस समय के साहित्य, दर्शन, धर्म, कला और संस्कृति के ह्रास-विकास का प्रतिनिधित्व करता है। महावीर का युग दार्शनिक चिन्तन का युग था। धर्म-दर्शन पर दार्शनिक विचार-विमर्श अधिक होता था। उस समय व्यक्तित्व निर्धारण की एक परम्परा चली, जिसमें अच्छे-बुरे विचारों और परिणामों को रंगों के माध्यम से व्यक्त किया गया। मनुष्य की श्रेष्ठता और निकृष्टता वर्गों की शुभता और अशुभता के आधार पर व्याख्यायित की गई। अच्छे विचार, व्यवहार, संस्कार के लिए शुभ वर्ण - लाल, पीत और शुक्ल शब्दों का प्रयोग हुआ। इसी तरह बुरे विचार, व्यवहार, संस्कार और आचरण के लिए कालिमामय वर्ण - कृष्ण, नील, कापोत शब्दों का प्रयोग हुआ। जैन साहित्य में लेश्या' का मनोवैज्ञानिक वर्णन प्रकीर्ण रूप में विशद एवं सुव्यवस्थित मिलता है। लेश्या मनुष्य की वैचारिक तथा मानसिक परिणामों की अभिव्यक्ति है। लेश्या का नामकरण रंगों के आधार पर किया गया है, क्योंकि इसकी संरचना में मानसिक परिणामों के साथ पौद्गलिक पर्यावरण भी जिम्मेदार है। अत: पुद्गल के स्वाभाविक गुण, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से वह वियुक्त नहीं हो सकती। चूंकि वर्ण का प्रभाव हमारी पकड़ में जल्दी आता है, इसलिए लगता है लेश्या सिद्धान्त में वर्ण को व्यक्तित्व का प्रतिनिधि मानकर मनुष्य के चरित्र को वर्गीकृत किया गया। - रंगों के आधार पर किया गया मनुष्यवर्ग का वर्गीकरण और व्यक्तित्व का मापन न केवल जैन साहित्य में अपितु जैनेतर साहित्य में भी उपलब्ध होता है। जैन साहित्य इस वर्णवाद को लेश्या द्वारा, आजीवक तथा बौद्ध साहित्य इसे अभिजाति द्वारा, उपनिषद्, महाभारत, गीता आदि अन्य ग्रन्थ कृष्ण-शुक्ल जैसे महत्त्वपूर्ण वर्णों द्वारा मनुज-मन की व्याख्या करते हैं। विभिन्न दर्शनों में वर्णवाद __ लेश्या से मिलती-जुलती मान्यताओं का वर्णन हमें प्राचीन श्रमण परम्पराओं में 'अभिजाति' नाम से मिलता है। बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ दीघनिकाय में छह तीर्थंकरों का उल्लेख है। उनमें पूरणकश्यप भी एक रंग है। रंगों के आधार पर उन्होंने छह अभिजातियां निश्चित की। वे इस प्रकार हैं : 1. कृष्णाभिजाति - क्रूर कर्म करने वाले सौकरिक, शाकुनिक प्रभृति जीवों का समूह । 2. नीलाभिजाति - बौद्ध श्रमण और कुछ अन्य कर्मवादी-क्रियावादी भिक्षुओं का समूह । 3. लोहिताभिजाति - एक शाटक निर्ग्रन्थों का समूह । 1. अंगुत्तर निकाय 6/6/3, भाग 3, पृ. 35-94 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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