Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 6
________________ प्रकाशकीय जैन विश्व भारती, जैन विद्या के विकास एवं मानवीय मूल्यों के अभ्युत्थान को समर्पित संस्थान है । व्यक्ति के रूपान्तरण और स्वस्थ मानव समाज के निर्माण हेतु श्रद्धेय गुरुदेव श्री तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञ के दूरदर्शी चिन्तन और युगानुकूल मार्गदर्शन में शिक्षणप्रशिक्षण का सतत सिलसिला उत्तरोत्तर वर्द्धमान है 1 शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में जैन विश्व भारती का एक लम्बा योगदान है। अनेक विद्वानों यहां प्रकृष्ठ शोध कार्य किया है और कर रहे हैं। इस दृष्टि से संस्थान का गौरवशाली इतिहास है, जिसमें प्रस्तुत प्रकाशन से एक और अध्याय जुड़ रहा है। मुमुक्षु डॉ. शान्ता ने लेश्या और मनोविज्ञान जैसे गूढ़, गहन और गम्भीर विषय पर शोध की है । यद्यपि मनोविज्ञान का मनोविज्ञान भी बड़े-बड़े वैज्ञानिकों की पकड़ में नहीं आ रहा है, फिर दर्शन के साथ जुड़े लेश्या के मनोविज्ञान की सूक्ष्मता पर शोध करना निस्संदेह कठिन कार्य है। डॉ. शान्ता लम्बे समय से अध्ययन और शोध कर रही हैं। अपनी लग्न और साधना से इस क्षेत्र में कड़ी जमीन तोड़कर उन्होंने प्रवेश किया है। सम्पूर्ण जैन दर्शन, रंग विज्ञान, कर्मवाद और विभिन्न साधना पद्धतियों के अध्ययन के बिना यह कार्य संभव नहीं था। श्रद्धेय आचार्य महाप्रज्ञ की दर्शन दृष्टि मुख्य रूप से उनके लिए शोध का आधार बनी। प्रेरणा से अधिक श्रम भी ऐसे कार्य में अपेक्षित होता है जो इस ग्रंथ के हर पृष्ठ पर परिलक्षित है। - | कहते हैं, जब बच्चा पैदा होता है तभी 'मां' का भी जन्म होता है। ठीक इसी प्रकार जब 'रचना' का निर्माण होता है तभी रचनाकार (लेखक/लेखिका) भी पैदा होते हैं डॉ. शान्ता, किन्तु बचपन से ही लेखनपटु है और वे सम्प्रति सुप्रसिद्ध मासिक पत्र " जैन भारती" की सम्पादिका हैं । इसीलिए उन्होंने इस दुरूह विषय को भी रोचक और सहज बनाकर प्रस्तुत किया है। जैन विश्व भारती की प्रथम शोध छात्रा मुमुक्षु डॉ. शान्ता जैन की इस महत्वपूर्ण कृति को प्रकाशित करके हमें संतोष मिला है। विश्वास है कि व्यक्तित्व निर्माण के क्षेत्र में यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only धरमचन्द चोपड़ा अध्यक्ष जैन विश्व भारती www.jainelibrary.org

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