Book Title: Lalitvistarakhya Chaityavandan Sutra Vrutti
Author(s): Haribhadrasuri, Munichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 9
________________ Jain Education Inter परमब्रह्मण एते सादिपृथक्त्वममीषां कूपे पतितोत्तारण० भव कूपपतितसत्त्वो ० एवं चाद्वैते सति आगमेनानुमानेन आगमश्वोपपत्तिश्च | आगमो ह्याप्तवचन० तच्चैतदुपपत्त्यैव अन्यथाऽतिप्रसङ्गः स्यात् एगंमि पूइयंमी अग्निर्दहति नाकाशं रूपालोकमनस्कार यतः स्वभावतो जात० ६६-२ ६७-१ ६७-१ ६७-१ ६७-१ ६९-१ ६९-२ ६९-२ ६९-२ ६९-२ ७०-१ ७३-१ ७४ ७५-१ अन्यचैवंविधं चेति नारम्भे चिय दीसइ तेणेह कज्जमाणं आदरः करणे प्रीतिः अतोऽभिलषितार्थाप्तिः दण्डीखण्डनिवसनं मोहविकारसमेतः अगणी उ छिंदिज्ज व वयभङ्गे गुरुदोसो उस्सा न निरंभ सवत्थ संजमं संज गृहद्वत् विद्याजन्माप्तितस्तद्वत् विषग्रस्तस्य मन्त्रेभ्यो For Private & Personal Use Only ७५-१ ८३-१ ८३-१ ८४-१ ८४-१ ८४-१ ८४-२ ८५-२ ८६-१ ८६-२ ८६-२ ८८-२ ८८-२ ८८-२ jainelibrary.org

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