Book Title: Lalitvistarakhya Chaityavandan Sutra Vrutti
Author(s): Haribhadrasuri, Munichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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साक्षिधृतपद्यानुक्रमः
८९-१
९५-२ ९५-२ ९६-१ ९६-१ ९६-१ ९६-१
ललितवि० शैवे मार्गेऽत एवासौ
क्रियाज्ञानात्मके योगे दुर्गतिप्रसृतान् जन्तून् ज्ञानिनो धर्मतीर्थस्य अज्ञानपांशुपिहितं दग्धे बीजे यथाऽत्यन्तं क्षीणक्लेशा एते |स्तुत्या अपि भगवन्तः का यस्तु स्तुतः प्रसीदसि
शीतार्दितेषु हि यथा तद्वत्तीर्थकरान्ये हीनं कुलं बान्धववर्जितं च एत्तो य दसाईसुं पुण निरभिस्संग
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९०-२ ९१-१ ९३-१
नार्घन्ति रत्नानि समुद्रजानि अस्यां सखे ! बधिरलोकनिवासभूमौ भासा असच्चमोसा तप्पत्थणाए तहवि य चिन्तामणिरयणादिहिं वत्थुसहावो एसो भत्तीऍ जिणवराणं चंदाइच्चगहाणं क्रियैव फलदा पुंसां न संसारे न निर्वाणे नैकादिसङ्ख्याक्रमतो यत्र क्लेशक्षयस्तत्र कम्मे सिप्पे य विज्जा य | जत्थ य एगो सिद्धो
ॐ00000000000000000
९३-१ ९३-१ ९३-१ ९४-२ ९५-१
९६-२ १०४-१ १०६-२ १०७-१
॥
५
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