Book Title: Lalitvistarakhya Chaityavandan Sutra Vrutti
Author(s): Haribhadrasuri, Munichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 8
________________ ललितवि० साक्षिधृतपद्यानुक्रमः ५३-१ . . ५३-२ 0000000000000000000006 द्वितीयापूर्वकरणे अतस्त्वयोगो योगानां एतत्रयमनाश्रित्य मित्रा तारा बला दीपा कः कण्टकानां प्रकरोति तैष्ण्यं अतीन्द्रियाणामर्थानां पणनउई उ सहस्सा तत्स्वाभाव्यादेव धर्मादीनां वृत्तिः कजं इच्छंतेणं .. | उज्जुसुअस्स सयं संपयं नाईयमणुप्पन्नं कायः सन्निहितापायः | अनित्यताकृतबुद्धिः १४-२ (यो०) | भावणसुयपाढो १५-१ " सरणं भए उवाओ १६-२-पं" पाणवहाईयाणं १६-२-पं" बज्झाणुहाणेणं १८-१-4 जीवाइभाववाओ सामा उ दिया छाया १९-१-पं जे आरिसस्स अंतो १९-२-६ (त.) पुरुषोऽविकृतात्मैव विभक्तेदृक्परिणतो स्थितः शीतांशुवज्जीवः ३४-१ सिय तत्तुल्लागारं तदभिन्नागारत्ते ३८-१-4 तुल्लत्तं सामन्नं ४७-१ | इह बोदि चइत्ता णं ६१-२ 000000000000000000000 ३२-१ ६१-२ ६२-१ ६४-१ " ॥४ ॥ Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

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