Book Title: Lalitvistarakhya Chaityavandan Sutra Vrutti
Author(s): Haribhadrasuri, Munichandrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 11
________________ ११४ १०८-१ ११२ बत्तीसा अडयाला कल्पद्रुमः परो मनः कल्पद्रुमो महाभागः न पुण्यमपवर्गाय पंचंगो पणिवाओ ११२ ११२ दो जाणू दोण्णि करे अन्नोन्नंतरिअंगुलि. चत्तारि अंगुलाई मुत्तासुत्ती मुद्दा विशुद्धभावनासारः ११४ ११४ ११५ ११३ 000000000000000000000 साक्षिद्यतगतवाक्यानुक्रमः।२ असदभिधानं मृषा (त० असू ९) १२-१ हीनाधिकाभ्यामुपमा मृषा २३-२ पुष्पामिषस्तोत्रप्रतिपत्तिपूजानां यथोत्तरं प्राधान्यं १२-२ विरुद्धोपमायोगे तद्धमोपत्त्या तदवस्तुत्वम् २४-२ प्रशमसंवेगनिर्वेदानुकम्पाऽऽस्तिक्या० १५-२ अक्रमवदसत् २६-२ नामस्थापना (त० अ० १ सू ५) १५-२ स्तवेऽपुष्कलशब्दः प्रत्यवायाय ३७-२ तित्थं भंते ! तित्थं १९-१-(भग०) निवृत्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियं ३९-२ (त० अ० २ सू० १७) महेशानुग्रहाद्बोधनियमा० १९-२ लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियं ३९-२(त० अ० २ सू० १८) नास्ति कश्चिदभाजनं सत्त्वः २१-२ नाप्रत्ययानुग्रहमन्तरेण तत्त्वशुश्रूषादयः (इत्यादि)४३-२ 100000000000000000000 Jain Education Intel For Private & Personel Use Only aw.jainelibrary.org

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