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११०० पृष्ठो का महत्वपूर्ण वृहद ग्रन्थ है। इसमे ३८ ध्यान के रगीन चित्र प्रकाशित किये गये है, इस ग्रन्थ के सकलनकर्ता परमपूज्य श्री १०८गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज ही है। ग्रन्थ के सम्बन्ध मे गणधराचार्य महाराज के विचार निम्न प्रकार है
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ग्रन्थ में करूणानुयोग, द्रव्यानुयोग आदि सभी प्रकार की चर्चाये सग्रहित की गई है और आधार लिया गया है जिनागम का मै समझता हू कि स्वाध्याय प्रेमियो को इस एक ही ग्रन्थ के स्वाध्याय करने से जिनागम का बहुत कुछ ज्ञान हो सकता है, इस ग्रन्थ . मे गुण स्थानानुसार. श्रावक धर्म, मुनि धर्म, आत्म ध्यान, पीडस्थ रूपापीत आदि ध्यान और उनके चित्रो सहित वर्णन किया गया है, और भी अनेक सामग्री सकलित की गई है। यह ग्रन्थ अपने आप मे एक नया ही सग्रहित हमा है, इस ग्रन्थ मे सभी ग्रन्थो से लेकर २,१७८ श्लोको का सग्रह है।
__इस ग्रन्थ मे पूर्वाचार्यकृत -गोम्मटसार, जीवकाड, त्रिलोकसार, मूलाचार, ज्ञानार्णव, समयसार,प्रवचनसार, नियमसार, रत्नकरड श्रावकाचार, तत्वार्थ सत्र, राजवातिक आचारसार, अष्टपाहुड, हरिवश पुराण, ग्रादि पुराण . वसु नन्दी श्रावकाचार, परमात्म प्रकाश, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, समयसार कलश, धवलादि, उमा स्वामी का श्रावकाचार. जैन सिद्धान्त प्र दशभक्त्यादि सग्रह चर्चाशतक, चर्चा समाधान, स्याद्वाद चक्र, चर्चासागर, सिद्धान्तसार प्रदीप, मोक्ष मार्ग प्रकाशक, त्रिकालवर्ती महापुरुष आदि बड़े-२ ग्रन्थो का आधार लेकर सग्रह किया गया है।"