Book Title: Labhoday Ras Vachna Biji Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ 30 अनुसंधान-२७ (8) आ पछी ११४-१२३ कडीनो त्रुटित अंश ला. २मां प्राप्त थयो छे, ते जोईए. आ अंशमां, गुरुनी विरुद्धमां ब्राह्मणादिए शहेनशाहनी कानभंभेरणी करेली अने सूर्य तथा गंगा विषे शाहना मुखे प्रश्नो गुरुने पूछावेला, तेनो प्रत्युत्तर जे गुरुए आप्यो, अने ते थकी शाहने समाधान थतां विरोधीओनो जे पराभव थयो, तेनुं बयान मळे छे. कडी १२६-२९मां नगरठठा, सिंध, कच्छ-ए देशोमा चोमासामां मच्छीमारी न थाय तेवू फरमान शाहे गुरुने आप्यानो उल्लेख छे. साथे गोवंश तथा अन्य प्राणीओ माटे अमारि-फरमान, मृतकवेरानुं निवारण तथा कोईने केदखानामां न नाखवानो हुकम पण शाहे आपेल छे. तो ते पछीनी ढालमां शाहे गुरुना उपदेशथी करेलां अहिंसाप्रधान सत्कार्योनी नोंध पण जोई शकाय छे. (9) समस्या एक ज छे के ला.१मां (कडी ११९-२३) शेखनी प्रार्थनाथी गुरुए उपाध्यायपद आप्यानो उल्लेख छ, ते आ ला.रनी वाचनामां केम नथी ? ला. १ गत कडी ११९-२० आ प्रमाणे छे : शेषजी श्रीगुरुकुं कहई, भलशिष्य तुहीरा भाण । मलेच्छ करें डेकाविली, सो किआ चतुर सुजाण ॥ गुरु कह्या हमारा कीजइ, उपाध्याय पदवी दीजइ ॥ (ला.१नी भूमिकामां “केटलाक खास मुनिवरोने उपाध्याय पद" आबुं विधान छे ते बराबर नथी; भाण एटले भानुचन्द्र गणिने ज पद आपवानी वात छे). आ घटना ऐतिहासिक छे. 'हीरसौभाग्य' (सर्ग १४)मां आ घटनानो आ प्रमाणे उल्लेख थयो छ : श्रीमत्सूरिवरो व्यधत्त वसुधावास्तोष्पतेराग्रहेणोपाध्यायपदस्य नन्दिमनघां श्रीभानुचन्द्रस्य सः । शेखो रुपकषट्शती व्यतिकरे तत्राश्वदानादिभिभक्तः श्राद्ध इवार्थिनां प्रमुदितो विश्राणयामासिवान् ॥२९२॥ अर्थात् बृहस्पतितुल्य शेखना आग्रहथी सूरिजीए श्रीभानुचन्द्रजीने नन्दि(नाण)पूर्वक उपाध्याय पद आप्युं, अने ते प्रसंगे शेखे ६०० रुपियानो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23