Book Title: Labhoday Ras Vachna Biji Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान-२७
महिमनगर कइ सामहीइ, पंडित प्रबल प्रधान रे । रंगकुशल आवी नमइ, श्रीगुरु दिइ बहुमान रे ॥७०||तप०।। षोजो बहु षजमति करइ, लाभ घणा गुरु पावइ रे । गुरुजी श्रीसंघ महिमकु, नगर समाणइ आवइ रे ॥७०॥तप०॥ अतिआणंद तिहां हुउ, सांहमो साह कल्याण रे । लाहोरथी आवइ रंगस्यु, श्रावक अतिहिं सुजाण रे ॥७२।।तप०॥ प्रघल चित्त वित्त वावतु, श्रीगुरुकुं पधरावई रे ।। खानपुरइ श्रीलाहोरकइ, सांहमो श्रीसंघ आवइ रे ७३॥तप०॥
दूहा || श्रीगुरु सांभली आवतां, नरनारीना वृंद ।। थोके थोके मिली घणा, आवइ अति आनंद ॥७४॥
ढाल || राग-धन्यासी ॥ श्रीसंघ सांहमो ए आवइ, वाघा आछा बणावइ खासा मुलमुल साही, महिमुंदी अतलस लाई ॥५॥ खीरोदक खेस खांतीला, श्रावक सोहइ रंगीला । जडित कर्टि कट दोर, देखी जलइ कुंमति कठोर ॥७६।। चूआ चंदन अंगि लावइ, आछी मुद्रिका फावइ । कठिन कनकीए माला, हरखइं हेज मुछाला ॥७७|| केइ चडई वड़े हाथी, वेगई बोलावए साथी । सुखासन तुरी चकडोल, रथि चडइ रंगरोल १७८।। आवइ श्रावक सहु भेला, खरचणकी एही वेला । वरसइ कंचनधार, बंदी बोलइ जयकार ॥७९॥ सेषजी साथि साहीजादा, करइ ते बहुत दिवाजा । खान मुलक सांहमा आवइ, राय रांणा तिहां फावइ ॥८॥
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