Book Title: Labhoday Ras Vachna Biji Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
March-2004
आवइ हाथी स(सु)ढाला, घमकइ घुघरमाला । झूलिसुं कोतल आगई, नेजा नवरंग छाजइ ॥८१॥ सुंदरी सुंदर देह, आंखि काजल-रेह । नलवटि चंदाए चंगा, खेस उढइ पंचरंगा ॥८२।। लटकइ लाखीणी वीणी, उढणि पांमरी झीणी । नेउरी घूघरी घमकइ, चालइ गोरी सहु ठमकइ ॥८३।। पहइरइ सार पटउली, दप्पणफालीए पुहुली । कामिनी चंपकवरणी, करइ नित्य धर्मकी करणी ॥८४|| हईडइ नवसर हार, पहरइ सोल सिंणगार । सरस वय उपम रूडी, अंगीआं कसी कसी जूडी ||८५॥ मोहनीकट कटि लंकी, भमह कमाणि ते वंकी । अभिनव रूपि ए रंभा, साथल कदली ए थंभा ॥८६॥ भरयोवन मदि माती, चतुरकइ चिति सुहाती । रमझम करती ए बाला, महइकइ फूलकी माला ॥८७|| कोकिलकंठि समाणी, बोलइ सुललित वाणी । मिलइ सो सुंदरी टोलइ, धुंघटकइ पट उरइ ॥८८॥ विनय विवेक सरीति, गावइ श्रीगुरुगीत । मोती लुंछणां कीजइ, मणुअ जन्म फल लीजइ ॥८९॥ वसमसि अढलीक दांन, वंदइ युगह प्रधान । वाजितनाद ते वाजइ, नादि. गयणंगण गाजइ ॥९०|| भेरी नफेरी सहिनाई, पखाउज ताल बनाई । रबाप महुंअरि बीणा, किनरी शबद सो झीणा ॥११॥ ढोल कंसाल नीशाण, दडदडी मोटइ मंडाण । हुडक तिवल संख वाजइ, झल्लरी तूर ते छाजइ ॥१२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23