Book Title: Labhoday Ras Vachna Biji Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ 38 अनुसंधान-२७ गुरुचरण नमीनइ लेई गुरुकी आसीस नवकार जपइ मुखि स्मरणि जिन चउवीस । होवइ शुकन भले तिहां मयगल मलपत दीठ बोलइ वायस वांमो कुकर हरइ अनीठ ॥५०॥ दाहिण अंगइ आवइ नारि सुहासणि जेह विवहारी वारु दक्षण अंग वली तेह । चास तोरण रूपारेलि वारु दाहिण अंगिं बोलइ वामांगिइं खर तीतर मनरंगिइं ॥५१॥ दाहिण अंगिइं आवइ प्रथम पुहुरि मृग माल मनवंछित पूरइ एही हरणकी फाल । वांमागि देव्या बोलति विघन हरेय साचइ सुकुनतणइ बलि चालइ हर्ष धरेय ॥५२॥ दूहा ॥ जगि जस महिमा जागतो, पूरइ वंछित पास । श्रीगुरु भेटइ रंगसुं, श्रीसंखेश्वर पास ॥५३।। ढाल ॥ देसी धमालनी ॥ पाटणि वेग पधारीया, श्रीगुरु बहुत मंडाणि रे । शुभ करणी सहु को करइ, सुंणीय सहइगुरुकी वाणी रे ॥ तपगच्छपति गुरु गुणनिलो, श्रीविजयसेनसूरिंद रे । समतारसमांहिं झीलतु, धरतो मनि आणंद रे || तप० आंकणी ॥५४॥ सिद्धपुर मालवणिमांहि थई, रोह सरोतर चंग रे । सहसाअरजन राजवी, अधिक अधिक करइ रंग रे ॥५५।। मुंडथलाथी कासंदरइ, हवई कीजइ आबू जात रे । मनमोहन गिरि भेटतां, होवइ निर्मल गात रे ॥५६॥ सीरोहीइं सेवा करइ, देवडो राय सुलतान रे । तिणइ समय श्रीसंघ तिहां, करइ अधिक मंडाण रे ॥५७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23