Book Title: Labhoday Ras Vachna Biji Bhumika
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ 36 हरि तरकारी न हाथि लीइ, नाहीं लेत तंबोल नांगे पाउं फिरे, बहु बोलइ न बोल || ३४ ॥ बाल उचावई धर्म जाणि अइसे हिं उही देस विलाति सहु गाम फिरइ प्रतिबंध नां मोही । सत्तू - मित्त समचित गिणई, किंसहइ नि दिइ दोस महिने दस रोजे करइ न करइ टुक रोस ||३५|| भुई सुवइ धूपकालि धूप सीतकालि सीत समतिणमणि नाहीं क्रोध लोभ कामवयरी जीत । राह निहालइ चलइ पंथि साचे वयरागी पाढ पढइ गुरु ध्यान धरइ होवइ गुणरागी ॥३६॥ टाटुणुं उ करत नाहीं, मंत तंत जडी दारु सबाब होवइ सो कथन कथइ नाहीं किं न सारु ||३७|| दूहा ॥ वली निजमुखि साहि कहइ, अयसे वचन अनेक | इया खुदा तई निस्पृही, कींआ हीर यु एक ||३८|| एक ज हीर दीदार थई, हुआ हम बहुत सबाब | मरती मछी मनय कोई, बकस्या डावर तलाव ||३९|| भादुं नव रोजे जनमिदिन, जीव मरत मनीय कीध । पंखी छूटे उस वचन थई, बंद खलासी दीध ||४०|| अनुसंधान-२७ हीर चीरमणिमुद्रिका, देस मुलक पुर गाम । लालचि देखाई घणी, गुरुजी कहइ नाहीं काम ॥ ४१ ॥ साही कहइ गुरु हीरकुं, दर्शन देखण की चाय | जो सेषुजी तुम्ह कहु तु, लीजइ बहुड बोलाय ॥ ४२ ॥ ढाल || राग गोडी || सेषुजी इउं बोलइ साही स्युंणो अरदास तुम्ह जानत नीं को पंथ उहां को उदास । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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