Book Title: Kupaksha Kaushik Sahasra Kiran Aparnam Pravachan Pariksha
Author(s): Dharmsagar, Narendrasagarsuri, Munindrasagar, Mahabhadrasagar
Publisher: Shasankantakoddharsuri Jain Gyanmandir

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Page 10
________________ [७] 'पू महामहोपाध्याय श्री धर्मसागरगणि जीवन झरमर अने ते समयनी तपगच्छनी परिस्थिति लेखक : 'शासनकंटकोद्धारक' सूरिशिशु नरेन्द्रसागरसूरि पालीताणा २०५१ श्रावण वदी ६ बुधवार शासननायक प्रभु श्री महावीर परमात्माना पांचमां गणधर श्री सुधर्मास्वामीजीनी अविच्छिन्न पट्टपरंपरागत तपागच्छमां आजथी साडा चारसो वर्ष पूर्वेना विद्वान महर्षीओमा प्रवर्त्तता अनेक महत्त्वना मतभेदोना आगममीति अने आगमग्रन्थोनी साक्षी आपवा पूर्वकना टंकशाळी समाधानो आपनार अने ते ते मत-मतांतरोनी पराजय गाथाओ जेमां टंकारवामां आवे छे तेवा-'प्रवचनपरीक्षा, सर्वज्ञशतक, पर्युषणादशशतक, औष्टिकमतोत्सूत्रप्रदीपिका-इर्यायथिकीषट्विंशिका' आदि विद्वद् भोग्य ग्रन्थोनी रचयिता, शासनस्तंभ, विद्वशिरोमणिरत्न पूज्य महामहोपाध्यायश्री धर्मसागरजी महाराज विक्रमनी १७मी शताब्दीमां थया हता. के जे महापुरुष। तत्कालवर्ती समग्र पंडितो अने तार्किकोने विषे शिरोमणि हता. जे महोपाध्यायश्री धर्मसागरजी महाराजे, 'ते काळे स्वसमुदायमांना पण अनेक तेजोद्वेषी तथा प्रतिस्पर्धीमुनिओ होवा छतां पण प्रभु महावीरदेवना सिद्धांतोनुं प्राणसटोसटपणे नीडरताथी संरक्षण कर्यु हतुं।' एम ‘श्री हीरसौभाग्य महाकाव्य' तथा 'विजयप्रशस्ति' महाकाव्यमां पण तेमनी यशोगाथा गवायेल छ। तेओश्रीनी आ उज्वल यशोगाथाओथी तेमज तत्कालीन प्राप्त इतिहासना आधारे तेओश्रीना सत्तासमयना विद्वानोने अने त्यार पछीना आज सुधीना स्व-परपक्षीय एवा मध्यस्थविद्वानोने ते सत्य कबूल कवू पडे तेम छ। ___ आवा शासनप्राण, शासनस्तंभ महापुरुषनो संपूर्ण इतिहास मळतो नथी ते कमनसीबी छे अने तेथी प्राप्त इतिहास आधारे जणाय छे के-तेओश्रीनो जन्म विक्रम संवत् १५७६मां प्रायः छे, तेओ वीशा ओशवाल हता। आजीवन विकृतिना त्यागी अने महासंवेगी एवा श्री जीवर्षिगणी, तेमना प्रतिबोधक हता अने तेओश्रीनी दीक्षा-वडीदीक्षा, वि सं १५६५ पहेला तपागच्छाधिपति क्रियोद्धारक पू.आ.श्री आनंदविमलसूरि महाराजश्रीए आपेल, अने तेमना शिष्य आ. श्री वृद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज तेओश्रीना गुरु हता। पू. महो० श्रीना गणिपद संबंधी कोइ स्पष्ट माहिती मळती नथी; परंतु वि. सं. १६०६ पहेला तो अवश्य थइ छ। कारण के तेओश्री, हीरहर्ष (जगद्गुरु हीरसूरिजी) नी साथे देवगिरि न्यायशास्त्रनो अभ्यास करवा गया त्यारे गणिपदथी अलंकृत हता। त्यारबाद नाडलाइमां पू. गच्छाधिपति आ.श्री विजयदानसूरिजी महाराजे वि. सं. १६०८ना महा सुदि ५ गुरु-पुष्ययोगे तेओश्रीने उपाध्याय पदवी आपी हती। पू. महो० श्री धर्मसागरजी महाराजना हाडोहाडमां जिनबिंब-जिनागम-जिनशासन अने तदनुसारी तपोगच्छीया सामाचारी व्यापेली हती। वळी पोताना वडीलो प्रति पण उत्कटकोटीनो नैसर्गिक भक्तिभाव तथा पूज्यभाव हतो। आना कारणे ते ते वडीलोनां हृदयो तेओ प्रति एवा आकर्षित बनेल हतां के पू. आ श्री विजयदानसूरिजी म., पू. आ. श्री विजयहीरसूरिजी महाराज आदि पूज्यो क्रमे गच्छनायको थवा छतां पण पू. महो० श्री धर्मसागरजीगणिनी सलाह अने सूचनानो स्वीकार करवामां पोतानुं गौरव मानता अने तेमां ज गच्छर्नु कल्याण, उन्नति तथा महत्ता देखता हता!!

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