Book Title: Kshapak Shreni Arthadhikar Ane Paschim Skandh Arthadhikar
Author(s): Hemchandravijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 10
________________ OOO // सूरिभुवनभान्वष्टकम् // ola रचयिता - पंन्यासः श्रीकल्याणबोधिविजयगणिः (वसन्ततिलका) सज्ज्ञानदीप्तिजननैकसहस्रभानो ! सद्दर्शनोच्छ्रयविधौ परमाद्रिसानो ! दुष्कर्मभस्मकरणैकमनःकृशानो ! भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् // 1 // यो वर्द्धमानतपसामतिवर्द्धमान - भावेन भावरिपुभिः प्रतियुध्यमानः / क्रुच्छद्मलोभरहितो गलिताभिमानो, भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् // 2 // तेजः परं परमतेज इतो समस्ति, दुर्दृष्टिभित्तदमिचंदनि चामिदृष्टिः / भूताऽपि शैलमनसां नयनेऽश्रुवृष्टिः,भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् // 3 // तुभ्यं नमो भविकपङ्कजबोधभानो ! तुभ्यं नमो दुरितपङ्कविशोषभानो ! तुभ्यं नमो निबिडमोहतमोहभानो ! भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् // 4 // शीलैर्महानसि गुरो ! गुरुताप्रकर्ष ! पापेष्वपि प्रकृतदृष्टिपियूषवर्ष ! वृत्त्यैकपूतपरिशुद्धवचोविमर्श ! भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् // 5 // कल्लोलकृद्वरकृपा भवतो विभाति, देदीप्यते लसदनर्घ्यगुणाकरोऽन्तः / गम्भीरताऽतिजलधे ! नयनिम्नगाधे ! भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् // 6 // सीमानमत्र न गता न हि सा कलाऽस्ति, प्रक्रान्तदिक्सुगुणसौरभभाग्गुरोऽसि / दृष्टाश्च दोषरिपवो दशमीदशायां, भावाद् भजे भुवनभानुगुरो ! भवन्तम् // 7 // त्वद्पादपद्मभ्रमरेण देव ! श्रीहेमचन्द्रोक्तिकृता सदैव / भानो ! नुतोऽसीत्यतिभक्तिभावात्, त्वत्संस्मृतिसाश्रुससम्भ्रमेण // 8 // (इन्द्रवज्रा)

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