Book Title: Krodh Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 6
________________ क्रोध क्रोध कौन माने, “मैं गलत ?" प्रश्नकर्ता : हमारे सही होने पर भी कोई हमें गलत ठहराये, तो भीतर उस पर क्रोध आता है। तो वह क्रोध तुरन्त न आये, इस लिए क्या करें? दादाश्री : हाँ, मगर आप सही हो तब न? क्या आप सही होते हैं वास्तव में? आप सही हैं, ऐसा आपको पता चलता हैं? प्रश्नकर्ता : हमें हमारा आत्मा कहता है, कि हम सही हैं। दादाश्री : यह तो खुद-ब-खुद जज, खुद ही वकील और खुद ही आरोपी, इसलिए आप सही ही होंगे न? आप फिर गलत होंगे ही नहीं न? सामनेवाले को भी ऐसा होता है कि मैं ही सही हूँ। आपकी समझ में आया? ये हैं सभी कमजोरियाँ कोई तुझे धमकाये, तो तू उग्र हो जायेगा न? प्रश्नकर्ता : हाँ, हो जाता हूँ। दादाश्री : तो वह कमजोरी कहलाये या बहादुरी कहलाये? प्रश्नकर्ता : पर किसी जगह तो क्रोध होना ही चाहिए ! दादाश्री : नहीं, नहीं। क्रोध तो खुद ही एक कमजोरी है। किसी जगह क्रोध होना चाहिए. यह तो संसारी बात है। यह तो खुद से क्रोध निकलता नहीं हैं, इसलिए ऐसा बोलते हैं कि क्रोध होना ही चाहिए। मन भी नहीं बिगड़े वह बलवान प्रश्नकर्ता : तब फिर मेरा कोई अपमान करे और मैं चुपचाप बैठा रहूँ तो वह निर्बलता नहीं कहलायेगी? दादाश्री : नहीं, ओहोहो! अपमान सहन करना, यह तो महान बहादुरी कहलाये। अभी हमें कोई गालियाँ दे, तो हमें कुछ भी नहीं होगा। उसके प्रति मन भी नहीं बिगड़ेगा, यही बहादुरी ! और निर्बलता तो ये सभी किच-किच करते रहते है न, जीव मात्र लठ्ठबाजी करते रहते है न, वो सब निर्बलता कहलाये। इसलिए अपमान शांति से सहन करना, यह महान बहादुरी है और ऐसा अपमान एक बार ही पार कर दें, एक कदम लाँघ जायें, तो सौ कदम लाँघने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। आपकी समझ में आया? सामनेवाला बलवान हो तो उसके सामने तो जीवमात्र निर्बल हो ही जाता है। वह तो उसका स्वाभाविक गुण है। पर यदि निर्बल मनुष्य हमें छेड़े, तब हम उसे कुछ भी नहीं करें, तब वह बहादुरी कहलायेगी। वास्तव में निर्बल का रक्षण करना चाहिए और बलवान का सामना करना चाहिए। पर इस कलियुग में ऐसे मनुष्य ही नहीं रहे हैं। अभी तो निर्बल को ही मार मार करते हैं और बलवान से भागते हैं। बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो निर्बल की रक्षा करते हैं और बलवान का प्रतिकार करते प्रश्रकर्ता : किन्तु मुझे यह पूछना था कि अन्याय के लिए चिढ़ हो, वह तो अच्छा है न? किसी बात पर हमें स्पष्टतया अन्याय होता नज़र आये, तब जो प्रकोप होगा, वह योग्य है? दादाश्री : ऐसा है, कि यह सब क्रोध और चिढ, ये सभी कमजोरियाँ (विकनेस) हैं। सारे संसार के पास ये कमजोरियाँ हैं।Page Navigation
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