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क्रोध
क्रोध
कर देता है, वर्ना और कोई नहीं कर सकेगा।
क्रोध-मान-माया-लोभ की खुराक कुछ लोग जागृत होते हैं, वे कहते हैं कि यह क्रोध होता है वह हमें पसंद नहीं है, फिर भी करना पड़ता है। और कुछ तो क्रोध करते हैं और कहते है, "क्रोध नहीं करें तो हमारी गाड़ी चलेगी ही नहीं, हमारी गाड़ी बंद हो जायेगी।" ऐसा भी कहते हैं।
खिलाते रहते हैं। प्रतिदिन भोजन कराते हैं और फिर वे (दोष) तगड़े होकर घूमते रहते हैं।
बच्चों को मारे, भारी क्रोध में आकर पीटते हैं, फिर बीवी कहेगी, "बेचारे लड़के को क्यों इतना मारा?" तब कहेंगे, "तू नहीं समझेगी, मारने योग्य ही है।" इस पर क्रोध समझ जाता है कि, "अहह, मेरी खुराक जुटाई! भूल है ऐसा नहीं समझता और मारने लायक है ऐसा अभिप्राय दिया है, इसलिए यह मुझे खुराक खिलाता है।" इसे खुराक जुटाई कहते हैं। हम क्रोध को एनकरेज (प्रोत्साहित) करें, उसे अच्छा समझें, वह उसे खुराक दी कहलाता हैं। क्रोध को 'क्रोध खराब है' ऐसा समझें तो उसे खुराक नहीं दी कहलाये। क्रोध की तरफदारी की, उसका पक्ष लिया. तो उसे खुराक मिल गयी। खुराक से तो वह जी रहा है। लोग तो उसका पक्ष लेते हैं न?
क्रोध-मान-माया-लोभ निरंतर खुद का ही चुराकर खाते हैं, पर लोगों की समझ में नहीं आता। इन चारों को यदि तीन साल भूखे रखो, तो वे भाग जायेंगे। पर जिस खुराक से वे जी रहे हैं वह खुराक क्या ? यदि यह नहीं जानें, तो वे किस प्रकार भूखे मरेंगे? उसकी समझ नहीं होने से ही उन्हें खुराक मिलती रहती है। वे जीते किस प्रकार हैं? और वे भी अनादि काल से जी रहे हैं! इसलिए उसकी खुराक बंद कर दें, ऐसा विचार तो किसी को भी नहीं आता और सभी हाथ-मुँह धोकर उन्हें निकालने में लगे हैं। वे चारों यों ही जानेवालों में से नहीं हैं। वे तो आत्मा बाहर निकले तब साथ में भीतर के सभी कर्म परमाणु झाड़-पोंछ कर बाद में निकले। उन्हें हिंसक मार नहीं चाहिए, उन्हें तो अहिंसक मार चाहिए।
क्रोध-मान-माया-लोभ किसी चीज़ को हमने रक्षण नहीं दिया। क्रोध हो गया हो तब कोई कहे कि, "यह क्रोध क्यों करते हैं?" तब मैं कह दूँ कि, "यह क्रोध बहुत गलत चीज़ है, मेरी निर्बलता के कारण हो गया।" अर्थात् हमने रक्षण नहीं किया। पर लोग रक्षण करतें हैं।
आचार्य शिष्य को कब धमकाता है ? क्रोध हो तब। उस समय कोई कहे. "महाराज, इसे क्यों धमकाते हो?' तब महाराज कहे, "वह तो धमकाने योग्य ही है।" हो गया खतम। यह बोले, वह क्रोध की खुराक। किये हुए क्रोध का रक्षण करना, वही उसकी खुराक।
ये साधु नसवार सूंघते हों और हम कहें, "साहिब, आप नसवार सूंघते हैं ?" तब यदि वह कहे, "नसवार में हर्ज नहीं।" तो बढ़ता है।
ये चारों, क्रोध-मान-माया-लोभ हैं, उनमें से एक पर प्रेम ज्यादा होता है, दूसरे पर उससे कम होगा। इस तरह जिसकी तरफ़दारी ज्यादा, उसकी प्रियता अधिक।
स्थूल कर्म : सूक्ष्म कर्म स्थूल कर्म यानी क्या, यह समझाऊँ। तुझे एकदम क्रोध आया, तू क्रोध नहीं करना चाहता फिर भी आ गया. ऐसा होता है कि नहीं होता?
इन क्रोध-मान-माया-लोभ को तीन साल तक यदि खुराक नहीं मिलती तो फिर खुद-ब-खुद भाग जाते हैं, हमें कहना ही नहीं पड़ता। क्योंकि हर कोई चीज अपने-अपने खुराक से जीवित रहती है और संसार के लोग क्या करते हैं ? प्रतिदिन इन क्रोध-मान-माया-लोभ को खुराक