Book Title: Krodh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation
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क्रोध
भगवान ने तो क्या कहा है कि तेरा क्रोध ऐसा है कि तेरे सगे मामा के साथ तू क्रोध करता है तो उसका मन तुझ से अलग हो जाता है, सारी जिन्दगी के लिए अलग हो जाता है, तो तेरा क्रोध गलत है। वह क्रोध जो सामनेवाले के मन को साल-दो साल के लिए जुदा कर दे। फिर वापस एक हो जाये, उसे अप्रत्याखानी क्रोध कहा जाता है। जो मन को ब्रेकडाऊन कर डाले, उसे अंतिम कक्षा का यूज़लेस (निकम्मा) क्रोध कहा है, उसे अनंतानुबंधी क्रोध कहा है। और लोभ भी ऐसा, फिर मान, वे सभी ऐसे कठीन होते हैं कि उनके खतम होने के बाद मनुष्य सही ठीकाने आये और गुणस्थान प्राप्त करता है, वर्ना गुणस्थान में ही नहीं आता। क्रोध-मान-माया-लोभ, ये चार अनंतानुबंधी कषाय जायें तो भी बहुत हो
प्रश्नकर्ता : होता है।
दादाश्री : वह क्रोध आया तो उसका फल यहाँ ही तुरन्त मिल जाता हैं। लोग कहेंगे कि, “जाने दीजिए न उसे, वह तो है ही बहुत क्रोधी।" कोई तो उसे सामने से थप्पड भी मार दे। अर्थात् क्रोध होना यह स्थूल कर्म है। और क्रोध हुआ उसके पीछे आज तेरा भाव क्या है कि "क्रोध करना ही चाहिए।" तो वह अगले अवतार का फिर से क्रोध का हिसाब है। तेरा आज का भाव है कि क्रोध नहीं करना चाहिए, तेरे मन में निश्चय हो कि क्रोध करना ही नहीं है, फिर भी हो जाता है, तो
अगले अवतार के लिए तुझे बंधन नहीं रहा। यह स्थल कर्म में तुझे क्रोध हुआ तो तुझे इस अवतार मार खानी होगी। फिर भी तुझे अगले अवतार का बंधन नहीं होगा, क्योंकि सूक्ष्म कर्म में तेरा निश्चय है कि क्रोध करना ही नहीं चाहिए। और आज एक मनुष्य किसी पर क्रोध नहीं करता, फिर भी मन में कहता है कि, "इन लोगों पर क्रोध करें तो ही वे सीधे हों ऐसे हैं।" तब इससे अगले अवतार वह फिर क्रोधवाला हो जायेगा ! अर्थात् बाहर जो क्रोध होता है वह स्थूल कर्म है। (उस समय अंदर जो भाव होता है वह सूक्ष्म कर्म है।) यदि हम यह समझें तो स्थल कर्म का बिलकुल बंधन नहीं है। इसलिए यह 'सायन्स' (विज्ञान) मैं ने नई तरह से बताया है। अभी तक 'स्थूल कर्म से बंधन है ऐसा जगत को ढूँस दिया है और उससे लोग भड़कते रहते हैं।
गया।
अब ये कब जायें ? 'जिन' के पास से सुनें, तो ये जायें। 'जिन' यानी आत्मज्ञानी, वह किसी भी धर्म का आत्मज्ञानी हो, चाहे वेदान्त का हो, चाहे जैन का, पर आत्मज्ञानी होना चाहिए। उसके पास से सुनने पर श्रावक होता है। और श्रावक होने पर उसके अनंतानुबंधी कषाय जाते हैं। फिर अपने आप ही क्षयोपक्षम होता रहता है।
____ अब दूसरा उपाय यह है कि हम उसे भेदज्ञान करा देते हैं। तब सारे कषाय चले जाते हैं, खतम हो जाते हैं। यह इस काल का आश्चर्य है। इसलिए इसे "अक्रम विज्ञान" कहा है न!
भेदज्ञान से छूटे कषाय
-- जय सच्चिदानंद
प्रश्रकर्ता : चार कषायों को जीतने के लिए कोई प्राथमिक भूमिका तैयार करना ज़रूरी है ? यदि ज़रूरी हो तो उसके लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : ऐसा है न, यदि क्रोध-मान-माया-लोभ, ये चार चले जायें तो वह भगवान हो गया!

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