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क्रोध
जो क्रोध करता है न, उसमें हिंसक भाव नहीं होता है। बाकी सब में हिंसक भाव होता है। फिर भी इसमें ताँता तो रहता है, क्योंकि वे बेटी को देखते ही अंदर क्लेश शुरू हो जाता है।
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यदि क्रोध में हिंसक भाव और ताँता, ये दो नहीं हों, तो मोक्ष मिल जाता है। और यदि हिंसक भाव नहीं, सिर्फ ताँता है, तो पुण्य बंधता है। कैसी सूक्ष्मता से भगवान ने ढूंढ निकाला है!
क्रोध करे फिर भी बाँधे पुण्य !
भगवान ने कहा है कि दूसरों के भले के लिए क्रोध करें, परमार्थ हेतु क्रोध करें तो उसका फल पुण्य मिलता है।
अब इस क्रमिकमार्ग में तो शिष्य डरते ही रहते है कि "अभी कुछ कहेंगे, अभी कुछ कहेंगे।" और वे (गुरु) भी सारे दिन सुबह से अकुलाये हुये ही बैठे रहते है। तो ठेठ दसवे गुणकस्थान तक वैसा ही वेष। वे आंख लाल करें तो अंदर आग झरती है। कितनी सारी वेदना होती होगी! तब कैसे पहुँच पायें ? इसलिए मोक्ष पाना क्या यों ही लड्डू खाने का खेल है ? ये तो कभी ही ऐसा अक्रम विज्ञान प्राप्त होता है।
क्रोध यानी एक प्रकार का सिग्नल
संसार के लोग क्या कहते हैं कि इस भाई ने लड़के पर क्रोध किया, इसलिए वह गुनहगार है और उसने पाप बाँधा। भगवान ऐसा नहीं कहते। भगवान कहते हैं कि, “लड़के के ऊपर क्रोध नहीं किया, इसलिए उसका बाप गुनहगार है। इसलिए उसका सौ रूपये दंड होता है।" तब कहे, "क्रोध करना ठीक है ?" तब कहते हैं, "नहीं, मगर अभी उसकी ज़रूरत थी। यदि यहाँ क्रोध नहीं किया होता तो लड़का उल्टे रास्ते चला जाता।"
अर्थात क्रोध एक प्रकार का लाल सिग्नल है, और कुछ नहीं । यदि आँख नहीं दिखाई होती, यदि क्रोध नहीं किया होता, तो लड़का उल्टे
क्रोध
रास्ते पर चला जाता। इसलिए भगवान तो लड़के के ऊपर बाप क्रोध करे, फिर भी उसे सौ रूपये ईनाम देते हैं।
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क्रोध तो लाल झंडा है। यही पब्लिक को पता नहीं और कितनी देर लाल झंड़ा खड़ा करना, कितने समय के लिए खड़ा करना, यह समझने की ज़रूरत है। अभी मेल गाडी जा रही हो और ढाई घण्टे लाल झंडा लेकर बिना कारण खड़ा रहे, तो क्या होगा? यानी लाल सिग्नल की ज़रूरत है, मगर कितना टाईम (समय) रखना, यह समझने की ज़रूरत है। ठंडा (शांत रहना), वह हरा सिग्नल है।
रौद्रध्यान का रूपांतर धर्मध्यान में
बच्चों पर क्रोध किया, पर आपका भाव क्या है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। आपका भाव क्या है ?
प्रश्नकर्ता: ऐसा नहीं होना चाहिए।
दादाश्री : इसलिए यह रौद्रध्यान था, वह धर्मध्यान में रूपांतरित हो गया। क्रोध हुआ फिर भी परिणाम में आया धर्मध्यान ।
प्रश्नकर्ता : ऐसा नहीं होना चाहिए, यह भाव रहा है इसलिए? दादाश्री: हिंसक भाव नहीं है उसके पीछे। हिंसक भाव बगैर क्रोध होता ही नहीं, पर क्रोध की कुछ एक दशा है कि यदि खुद का बेटा, खुद का मित्र, खुद की वाईफ पर क्रोध करने पर पुण्य बँधता है। क्योंकि यह देखा जाता है कि क्रोध करने के पीछे उसका हेतु क्या है ? प्रश्नकर्ता प्रशस्त क्रोध ।
दादाश्री : वह अप्रशस्त क्रोध, बुरा कहलाये ।
इसलिए यह क्रोध में भी इतना भेद है। दूसरा, पैसों के लिए बेटे को भला-बुरा कहें कि तू धंधे में ठीक से ध्यान नहीं देता, वह क्रोध