Book Title: Katantra Roopmala Author(s): Sharvavarma Acharya, Gyanmati Mataji Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan View full book textPage 7
________________ ७. अजमेर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में भावसेन वाली पाण्डुलिपि उपलब्ध होती है जिसकी पत्र संख्या ६९ है। ८. उदयपुर के संभवनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में भावसेनवाली टीका की दो पांडुलिपियाँ संगृहीत हैं। जिनकी पत्र संख्या क्रमश: ११७ व १३८ है तथा जिनका लेखन काल संवत् १५५५ एवं संवत् १६३७ है। दोनों ही पाण्डुलिपियाँ शुद्ध एवं सुन्दर अक्षरों वाली हैं।। ९. नागौर (राजस्थान) के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में कातन्त्र व्याकरण की ४ प्रतियाँ संगृहीत हैं। इनमें एक पाण्डुलिपि संवत् १५२४ कार्तिक सुदी ७ सोमवार की है। उक्त पाण्डुलिपियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजस्थान में कातन्त्र व्याकरण के पठनपाठन का खूब अच्छा प्रचार था। माताजी द्वारा सम्पादन यह अत्यधिक प्रसन्नता की बात है कि पूज्य आर्यिकाशिरोमणि ज्ञानमतीजी माताजी ने कातन्त्र व्याकरण का हिन्दी अनुवाद करके सम्पादन किया है। यह संभवत: प्रथम अवसर है जब कि किसी व्याकरण का हिन्दी अनुवाद किया गया है। इससे प्रस्तुत व्याकरण के पठन-पाठन में अत्यधिक सुविधा मिलेगी। माताजी का वैदुष्य, सिद्धान्त ग्रन्थों का गम्भीर ज्ञान, उनका अनुवाद एवं सम्पादन देश एवं समाज को गौरवान्वित करने वाला है। अब तक उनके द्वारा लिखित, अनूदित एवं सम्पादित ग्रन्थो की संख्या इतनी अधिक है कि उनको सहज में याद रखना भी कठिन है। स्वास्थ्य खराब होने पर भी वे सतत साहित्य साधना में लगी रहती हैं जिस पर हम सबको गर्व है । आशा है पूज्य माताजी द्वारा इसी प्रकार साहित्य की अजस्त्र धारा बहती रहेगी। पूज्य माताजी द्वारा सम्पादित ग्रन्थ पर दो शब्द लिखते हुए मुझे अतीव प्रसन्नता है और इसके लिए मैं माताजी के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ। ८६७ अमृत कलश डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल बरकत नगर, किसान मार्ग निदेशक एवं प्रधान संपादक टोंक फाटक, जयपुर-१५ श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी, जयपुर १ देखिये-नागौर शास्त्र भण्डार की ग्रंथ सूची डॉ० पी० सी० बैन । पृष्ठ संख्या १७१.Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 420