Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04 Author(s): Arunvijay Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 9
________________ मनुष्यों की संख्या (२) ही हो सकती है। (२)96 अर्थात् २९ अंक वाली संख्या यही उत्कृष्ट संख्या मनुष्य गति के समस्त मनुष्यों की हो सकती है । यह केवल संख्यात की गिनती में आती है जबकि इतनी भी संख्या कभी पूरी हो नहीं पाई है। अतः मनुष्य गति में तो बहुत ही सीमित मनुष्य जीवों की संख्या है । इसीलिए मनुष्य का जन्म कीमती जन्म है । अतः देव-नरक या तिथंच की गति से मुश्किल से २% या ५% जीव ही मनुष्य गति में प्राते होंगे। मनुष्य का चारों गति में गमन मनुष्य गति और तिर्यंच गति के जीवों के लिए उपरोक्त नियम नहीं लागू होता । ये चारों गति में जाते हैं, जन्म लेते हैं । मनुष्य मृत्यु के बाद देवगति में जाकर देव बनता है । नरक गति में जाकर नारकी बनता है । तिर्यंच गति में जाकर पशुपक्षी के जन्म धारण करता है। उदाहरण के लिए एक राजा की बात देखें । राजा शिकार के लिए घोड़े पर तेज रफ्तार से जा रहा था । दूर एक वृक्ष पर पके हुए मीठे बेर के फल दिखाई दिए । राजा को बेर बहुत ज्यादा प्रिय थे। प्रतः देखते ही मन ललचा गया । योगानुयोग रास्ता भी उसी वृक्ष के नीचे से जा रहा था। राजा ने सोचा वृक्ष के नीचे से पसार होते समय तोड़ लूंगा। ज्योंही घोड़ा वृक्ष के नीचे से पसार हुआ कि दूसरी डाल पर लटक रहा रस्सी का फांसा राजा के गले में लग गया। तेज रफ्तार से घोड़ा नीचे से पसार हो गया और राजा के गले में फांसी लग गई। देखते ही देखते राजा के प्राण पंखेरु उड़ गए । उसी समय किसी पोपट ने उस पके हुए मीठे बेर फल में चांच मारी, झूठा किया, नीचे गिराया। राजा का जीव अन्तिम इच्छानुसार उसी बेर में जाकर कीड़े का जन्म धारण करता है । सोचिए मनुष्य गति में से तिर्यंच गति के तेइन्द्रिय पर्याय के कीड़े के रूप में कैसा जन्म मिला। मनुष्य के लिए एक सबसे अच्छी सुविधा यह है कि यदि मनुष्य चाहे और तदनुसार पुरुषार्थ करे तो पुनः मनुष्य भी बन सकता है । एक बार प्राप्त हुई मनुष्यगति के बाद भी तुरन्त मनुष्य बन सकता है । जो सुविधा देवगति में नहीं थी वह मनुष्य गति में है । परन्तु इसके लिए पूरा पुरुषार्थ करें तो ही यह सम्भव है। उदाहरणार्थ भगवान महावीर स्वामी ने अपनी २७ भव की परम्परा में २२वां भव मनुष्य गति में विमल राजकुमार का किया सौर पुनः सीधे ही २३वां जन्म भी मनुष्य गति में प्राप्त किया। जहां वे प्रियमित्र चक्रवर्ती बने । इस तरह मनुष्य से मरकर पुनः मनुष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। ऐसा सौभाग्य बहुत विरले जीव प्राप्त करते हैं । अतः मनुष्य का जीव-मनुष्य गति से चारों गति में जा सकता है। चारों गति में कहीं भी जन्म ले सकता है। कर्म की गति न्यारीPage Navigation
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