Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Author(s): Arunvijay
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 8
________________ नारकी जीव मरकर तुरन्त सीधा पुनः नारकी नहीं बनता। पुन नरक में सीधा ही जन्म नहीं लेता। हाँ ! जन्म मनुष्य या तिर्यंच गति में करके आए और फिर नरक में जन्म ले यह सम्भव है। उदाहरण के लिए भगवान महावीर की ही २७ जन्मों की परम्परा में देखिए। १८ वें त्रिपृष्ट वासुदेव के जन्म में शय्यापालक अंगरक्षकों के कान में गरम-गरम तपाया हुअा शीशा डलवाना, एवं सिंह को फाड़कर मार देना आदि महा पापों से उपार्जित कर्म के कारण १९वें जन्म में वे सीधे सातवीं नरक में गये । उस नरक का प्रायुष्य समाप्त होते ही सीधे तिर्यंच गति में गये जहां वे सिंह बने । यह भगवान महावीर का २०वां भव था। यहाँ से मरकर २१वें जन्म में वे पुन: ४ थी नरक में गए। पुनः ४ थी नरक से कालावधि समाप्त करके २२वें जन्म में मनुष्य गति में पाए । भगवान महावीर के दृष्टान्त से यह अच्छी तरह देख सकते हैं कि दोनों बार नरक गति से निकलकर सीधे नारकी नहीं बने परन्तु तिर्यंच और मनुष्य गति में गए हैं । अतः यह शाश्वत नियम है कि नरक गति का नारकी जीवं मृत्यु के पश्चात् सिर्फ मनुष्य और तिर्यंच की दो गति में ही जाता है। उसी तरह देव भी मृत्यु के पश्चात् तिर्यंच और मनुष्य की इन दो ही गति में प्राता है । देव और नारक इन दोनों के लिए तो ये दो गतियां हुई । सिर्फ मनुष्य और तिर्यंच । इसमें भी ऐसा नियम है कि ९८% जीव तो तिथंच गति में ही जाते हैं। चूंकि तिर्यंच गति बड़ी लम्बी चौड़ी है। एकेन्द्रिय से लगाकर पंचेन्द्रिय तक के सभी इन्द्रियों वाले जीव तिर्यंच गति में है। अतः तिर्यंच गति में अनन्त की संख्या में जीव राशि है । एकेन्द्रिय के पांचों स्थावर पृथ्वीकाय, अप्काय (पानी के जीव) तेउकाय (अग्नि के जीव), वायुकाय एवं वनस्पतिकाय ये सभी एवं दोइन्द्रिय वाले कृमि, कीड़े, आदि तथा तेइन्द्रिय में चींटी, मकोड़े आदि चउरिन्द्रिय में मक्खी, मच्छर प्रादि पंचेन्द्रिय में जलचर मछलियां प्रादि, स्थलचर में हाथी, घोड़े, बैल-बकरियां आदि एवं खेचर में कोया, तोता, मैना आदि इन सबकी गिनती गति के दृष्टिकोण से तिर्यंच गति में ही होती है । अतः संख्या की दृष्टि से यह तिर्यंच गति बहुत बड़ी है। इसमें अनन्त की संख्या में जीव राशि है । जबकि संख्या की दृष्टि से मनुष्य की गति में चारों गति की तुलना में बहुत ही कम संख्या है । अतः मनुष्य गति सबसे छोटी है । तिर्यंच गति में जीवों की संख्या अनन्त है । देवगति और नरक गति में जीवों की संख्या असंख्य की है । जबकि मनुष्य गति में जीवों की संख्या बहुत ही कम सिर्फ संख्यात है। वह भी समस्त वर्तमान विश्व ही नहीं अपितु ढाई द्वीप के सम्पूर्ण मनुष्य क्षेत्र के सभी मनुष्यों की संख्या भी देखी जाय तो सर्वज्ञ भगवंतों ने बताया कि सर्वोत्कृष्ट कर्म की गति न्यारी

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