________________
एक गति से दूसरी गति में
૨.મનુષ્યનું ચારે ગતિમાં
૩.તિર્યંન્ચનું ચારે ગતિમાં
ગમન
ગમન
૧.ચાર ગતિ મનુષ્ય દેવ
and
वन्य न
જ દેવનું બે ગતિમાં ગમન
પ.નરકનું બે ગતિમાં
गमन.
स्वस्तिक के केन्द्र में जीव है । जैन दर्शन में जीव और प्रात्मा ये दोनों ही पर्यायवाची शब्द हैं। जीव को ही प्रात्मा और आत्मा को ही जीव कहा गया है । जीव और प्रात्मा में कोई भेद नहीं है। जीव के परिभ्रमण के लिए संसार में ४ गतियां हैं। जिनको स्वस्तिक से सूचित की गई है। बताए हुए चित्र के अनुसार स्वर्गीय देव गति का जीव अपनी मृत्यु के बाद वहां से च्युत होकर सिर्फ २ ही गति में जाता है एक तो तिर्यंच गति में जाता है जहाँ घोड़ा, गधा, हाथी, ऊंट, बैल, बकरी आदि के जन्म धारण करता है । स्वर्ग अत्यन्त सुख रूप होते हुए भी वह मोक्षस्वरूप नहीं है। जैन दर्शन में स्वर्ग को भी संसार में ही गिना है। स्वर्ग प्राप्त करना कोई बड़ी बात नहीं है। वही सर्वोपरि या सब कुछ नहीं हैं । पशुपक्षी भी मरकर देवगति में स्वर्ग में जाते हैं। देव बनते हैं। भगवान महावीर स्वामी ने जिस चंडकौशिक सर्प को "बुझ-बुझ-चडकौशिक !" के शब्दों से संबोधित किया वह सांप जागृत हुआ। अंतस्थ चेतना जागृत हो गई, ऊहा-पोह से पूर्व जन्म की जाति स्मृति का ज्ञान प्रगट हुआ। अपने ही भूतकाल को देखने लगा। पूर्व जन्मों को देखने लगा। उसे अपने किए हुए पाप कर्म प्रांखों के सामने दिखाई देने लगे, मनुष्य जन्म में से गिरकर मैं आज यहां पशु गति में पाया हूँ। पापों का
कर्म की गति न्यारी