Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७
३८३ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ सूत्र-५
अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ वर्ग-१० सूत्र-२ अपूर्ण तक है.) १२३१९२ (#) स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७८८, आषाढ़ कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ३५-७(१ से ३,१९ से २०,२४
से २५)=२८, ले.स्थल. राधणपुर, पठ. मु. केसरवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ४४३६). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: अनंत सुखनो सदा रे,
स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)
स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: गाता अखयसंपद अति घणी. १२३१९४. (+#) कल्पसूत्र की कल्पकिरणावली टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१७)=१७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३३). कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (-),
(पू.वि. नागकेतु कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३१९६. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ६१, ले.स्थल. वडलुग्राम,
प्रले. ग. फतेविजय; पठ. श्राव. धनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संग्रहणीट० प. अंत में "सत्य सोचं तप सोचं सोचमिद्रिय निग्रहं सर्व भूतदया सोचं जल सोचं च पंचमं" लिखा हुआ है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा वीरजिण तित्थं,
गाथा-३९३.
बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहतां वांदीनइं; अंति: सर्व सुख पामइ. १२३१९७ (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५,१३४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-),
(पू.वि. व्याख्यान-६ तापस आश्रम में वर्षावास प्रसंग तक है.)
कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-). १२३१९९ (#) नवस्मरण व शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१०(१ से १०)=४, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक
नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३३). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. ११अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. म. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तव गाथा-२४ अपूर्ण से
बृहत्शांति-"कोष्ठागारा नरपतयश्च" पाठ तक है व कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) २.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक-१४अ के बीच में लिखी है.
पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. १२३२०० (#) उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. रंगोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,११४३१). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस; अंति: ए वछयले रमइ
सच्छाए, गाथा-४१.
उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चउवीसउ; अंति: वांछित सुख थाइ पामइ. १२३२०१. (+) ब्रह्मचर्य नववाडि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३९).
नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन नंदनवन; अंति: पुण्यसागर० सील अखंड, ढाल-२,
गाथा-१९.
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