Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 405
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३२४४. (+) गौतम कुलक का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११, ११X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम कुलक-बालावबोध+कथा क्र. रिधु, मा.गु., गद्य, आदिः सुवदेवी समरि करि अंति: (-), (पू.वि. मम्मणसेठ की कथा अपूर्ण पाठ-"अभयकुमार नाम राजकार्यभार धुरंधर" तक है., वि. मूल का प्रतीकपाठ है.) १२३२४५. (+) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X१०, ११X३०). पंचतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि जे जे नाभिनरिद नंद, अंति (-), (पू.वि. महावीरजिन स्तुति अपूर्ण तक है.) १२३२४६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६०-३४ (१ से ९,११ से १२,१४ से १५,१७,१९ से २०,२३ से २४,२६,२८,३१ से ३२,३४ से ३५,३७,४०, ४२ से ४३, ४५ से ४७,५४ से ५६) = २६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६×११, १३x४२). ३८९ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., अध्ययन-७ गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन- ३२ गाथा- ९७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३२४७. (*) मोतीकपासीया संवाद, अपूर्ण, वि. १७१२, १ फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १ प्रले. मु. जीवा (गुरु मु. समर्थजी ऋषि); गुपि. मु. समर्थजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५x११. १५x४२). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि (-); अंति: चतुरनरां चमतकार, ढाल ५, , गाथा-१०९, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा- ९५ अपूर्ण से है.) १२३२४८. (+) नर्मदासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नर्मदाराश., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, १७४३८). " 3 नर्मदासुंदरी रास- शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि (-) अंति: (-), (पू. वि. दाल-८ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १२३२४९. () भुवनदीपक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-४ (१ से ४) = ७, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, ७५५३). . भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५, आदि (-); अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १७३, (पू.वि. लोक-६० अपूर्ण से है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पद्मप्रभसूरि०नामे आचार्ये. १२३२५०. (०) दशवैकालिकसूत्र व दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४३-१(१) ४२, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैये. (२५.५४११.५, ६x४३). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-४३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अति मुच्चइ ति बेमि, अध्ययन- १०, (पू. वि. अध्ययन- २ गाथा-८ अपूर्ण से है. वि. चूलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: शिष्य प्रतइ कहइ छड़ २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा सह टबार्थ, पृ. ४३अ ४३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमा; अंति (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि सिज्जं भव गणधर के हवउ छड़, अंति: (-). १२३२५१. (*) बृहत्संग्रहणी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३३-३ (१ से २,१६) = ३०, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६११.५, ४X३९). For Private and Personal Use Only

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