Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 449
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३६२३. (**) चंद्रलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३१, ले. स्थल, रायपुर, प्र. मु. रीषभहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगणेशावजी प्रसादात्, श्रीदेवजि प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१२, १२४३२). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: जांकुं रस निसदिस, ढाल - २९, गाथा - ६२४. 1 १२३६२४. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-५ (१ से ५) =४, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैवे. (२५.५४११.५, ४४२६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण से गाथा ४९ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " १२३६२६. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८१६, चैत्र कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पू. ११ ले. स्थल, जावद, प्रले. उपा. अखैराज गणि पठ. माणिकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्लो. (९६४) यादृशं पुस्तके दृष्टां (१४८९) भग्न पृष्टि कटि ग्रीवा, जैदे. (२५x११, ११४४४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सुक्तिमुक्तावलीयं, द्वार-२२, ', ४३३ श्लोक-१०२. १२३६२७. (+) कल्पसूत्र की व्याख्यानकथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १५X४४). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, आदिः पुत्राः पंच मतिश्रुतावधि; अंति: (-). ( पू. वि. व्याख्यान २ अपूर्ण तक है.) १२३६३०. भगवतीसूत्र बोल व प्रज्ञापनासूत्र थोकडा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक- १० अनुमानित है. वे. (२६.५x१२.५, १७-२२४२४-३५). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह, पृ. १०अ ११अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति फल बीज १० इम जाणवा, (पू.वि. वेद द्वार अपूर्ण से है.) * २. पे नाम प्रज्ञापनापद धोकडा संग्रह, पृ. १९आ, संपूर्ण, प्रज्ञापनासूत्र- थोकडा संग्रह *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार संठांणद्वार; अंति: (-). १२३६३१. (+) कल्पसूत्र सह वालाववोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. प्रत्येक व्याख्यान के पत्रांक अलग होना संभव है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२५x११, १५X४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. नेमिनाथ चरित्र अपूर्ण मात्र है.) "" " कल्पसूत्र-बालावबोध*, कल्पसूत्र- बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १२३६३२. (+) भगवतीसूत्र प्रश्नोत्तर संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में ऋषी श्रीमेघराजजीनी नेसराना छे' एसा लिखा हुआ है., संशोधित., दे., (२५.५X११, १२X४५). भगवती सूत्र प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, वि. २०वी, आदि: भगवती सूत्रमां एक अंतिः तो घणी पडसे मार. १२३६३३. महावीरजिन द्वात्रिंशिका स्तोत्र व ५ परमेष्टि नमस्कार स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६६८, आश्विन शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, प्रले. मु. कल्याण (गुरु मु. कृष्णदास, लोंकागच्छ); गुपि. मु. कृष्णदास (गुरु मु. पकराज, लोकागच्छ); मु. पकराज (गुरु मु. जसवंत, लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११.५, ११४३२)९. पे. नाम महावीरजिन द्वात्रिंशिका स्तोत्र, पृ. २अ ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " For Private and Personal Use Only , महावीरजिनद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वर्द्धमानो जिनेंद्र, श्लोक-३२, (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ५ परमेष्टि नमस्कार स्तोत्र, पृ. ३अ ५अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभरअमरपणयं पणमिय; अंति: पढिएहि पुत्थयभरेहि, गाथा - ३५.

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