Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 471
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३८५५. (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६ १०.५, १२X३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: शिखाई वषट् स्वाहा. १२३८५७ (+) गौतमपुच्छा चौपाई व मुंहपत्ति के पचास बोल, संपूर्ण, वि. १६७४ फाल्गुन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पंडित. जीवविजय; गुपि. भट्टा. विजयतिलकसूरि; पठ. मु. कर्मसिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६५११, ११५४८). १. पे. नाम, गौतमपृच्छा चौपाई, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: लावण्यसमय० हियडइ वसु, गाथा-११३. २. पे. नाम. मुहपत्ति बोल, पृ. ६आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: पहली १ दृष्टि पडिलेहण; अंति: शरीरनी पडिलेहण विचार. १२३८५८ (+) सम्यक्त्वरहस्य स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २- १ (१) १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै.. (२६X११.५, १३x४०). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५, संपूर्ण. १२३८५९ (०) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १५२-१५० (१ से १५०) -२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी ०प.ट.. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६५११.५, ६५३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली सूत्र- ४० अपूर्ण से सूत्र- ४५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - टवार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-). १२३८६०. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४६-४५ (१ से ४५ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे. (२६४११, १४४४८). पुहिं., पद्य, आदि: चतुरंग रस की बात; अंति धाकित कित्ती कडा धाधा, गाथा ४. २. पे नाम. मुक्तिरमणी पद, पृ. १अ संपूर्ण. ४५५ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-११ उद्देशक-११ अपूर्ण मात्र है.) १२३८६२ (०) पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x११, ११४३५)१. पे नाम, साधारणजिन पद, पू. १अ. संपूर्ण. मु. . चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कांई देसडे पधारो जी जहां; अंति: रमण चित धारो जी, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि राजरी बधाई वाजे छे अति सेवा प्यारी लागे छे, गाथा-३, ४. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. יי आध्यात्मिक पद-सुमतिकुमति, पुहिं, पद्य, आदि अरि मैं कैसे मनावुं री, अंतिः हिल मिल सोरठ गावे री, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि मति जावोजी पिया गिरनार मै अंति: मगन भए संजम भार मे, गावा- ३. १२३८६३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २६-२५ (१ से २५) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. जैदे., (२५X११, ५X३३). For Private and Personal Use Only उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अति (-), (पू.वि. अध्ययन-९ गाथा ५२ अपूर्ण से ६३ अपूर्ण "1 तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). *, १२३८६५ (+) विक्रमादित्य नवसय कन्यानी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २६. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४११, " १२X४०). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहने सा हुइ कल्याण, ढाल - २७, गाथा-५८५.

Loading...

Page Navigation
1 ... 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624